संधि हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण विषय है, जिसका शाब्दिक अर्थ “मेल” है। संधि से संबंधित प्रश्न हिंदी और संस्कृत की परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते हैं। इस लेख में हम गुण संधि की परिभाषा, उदाहरण, और नियमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
गुण संधि का अर्थ है कि जब दो वर्णों का परस्पर मेल होता है, तो उसमें एक परिवर्तन उत्पन्न होता है। संधि के दौरान पहले शब्द के अंतिम वर्ण या ध्वनि और दूसरे शब्द के प्रारंभिक वर्ण या ध्वनि का मेल होने पर एक नया स्वर उत्पन्न होता है।
उदाहरण के लिए: राम + इन्द्र = रामेन्द्र
रामेन्द्र दो शब्दों, “राम” और “इन्द्र” से मिलकर बना है। पहले शब्द “राम” का अंतिम वर्ण ‘म‘ है, और ‘म‘ वर्ण (म् + अ) से मिलकर बना है, इसलिए राम का अंतिम वर्ण ‘अ‘ है। दूसरे शब्द (इन्द्र) का पहला वर्ण ‘इ‘ है। जब ‘अ‘ + ‘इ‘ मिलते हैं, तो ‘ए‘ बनता है। अतः राम्(
गुण संधि किसे कहते हैं?
गुण संधि एक प्रकार की संधि है जिसमें स्वर के मेल से नए स्वर का निर्माण होता है। इसे संस्कृत व्याकरण में विशेष महत्व दिया जाता है। गुण संधि के अंतर्गत, निम्नलिखित नियमों के अनुसार स्वर परिवर्तन होता है:
- ‘अ + इ’ = ‘ए’ → बौद्धिक (बुद्धि + इक)
- ‘अ + ऊ’ = ‘ओ’ → लोक (लौकिक)
- ‘अ + ऋ’ = ‘अर’ → अधिकार (अधि + करण)
गुण संधि का सूत्र
संधि का सूत्र निम्नलिखित है:
- जब ‘अ’ या ‘आ’ के साथ इ/ई हो:
- अ/आ+इ/ई→ए
- जब ‘अ’ या ‘आ’ के साथ उ/ऊ हो:
- अ/आ+उ/ऊ→ओ
- जब ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ऋ हो:
- अ/आ+ऋ→अर
(क) अ/आ + इ/ई = ए
स्वर | उदाहरण | संधि परिणाम |
अ + इ | देव + इन्द्र | देवेन्द्र |
अ + ई | देव + ईश | देवेश |
आ + इ | महा + इन्द्र | महेन्द्र |
आ + ई | महा + ईश | महेश |
अ + इ | राग + इन्द्र | रागेन्द्र |
अ + ई | जगत + ईश्वर | जगदिश्वर |
आ + इ | राजा + इन्द्र | राजेन्द्र |
आ + ई | सुन्दर + ईश | सुंदेश |
अ + इ | विद्या + इन्द्र | विद्येन्द्र |
अ + ई | जल + ईश | जलेश |
आ + इ | महा + इन्द्र | महेन्द्र |
आ + ई | राधा + ईश | राधेश |
अ + इ | सागर + इन्द्र | सागरेंद्र |
अ + ई | गणेश + ईश्वर | गणेशेश |
आ + इ | कर्ण + इन्द्र | कर्णेंद्र |
आ + ई | चंद्र + ईश | चंद्रेश |
अ + इ | गहन + इन्द्र | गहेन्द्र |
अ + ई | बालक + ईश | बालेश |
आ + इ | क्षितिज + इन्द्र | क्षितिजेन्द्र |
आ + ई | अग्नि + ईश | अग्नेश |
(ख) अ/आ + उ/ऊ = ओ
स्वर | उदाहरण | संधि परिणाम |
अ + उ | जल + ऊक | जलूक |
अ + ऊ | सुर + ऊक | सुरूक |
अ + उ | गण + उक | गणूक |
आ + उ | राजा + ऊक | राजूक |
आ + ऊ | महा + ऊक | महूक |
अ + उ | राग + उक | रागूक |
अ + ऊ | लोक + ऊक | लोकूक |
आ + उ | धरा + उक | धरूक |
आ + ऊ | सागर + ऊक | सगरूक |
अ + उ | पाट + उक | पाटूक |
अ + उ | सुख + उक | सुखूक |
आ + उ | चंद्र + ऊक | चंद्रूक |
अ + ऊ | बाल + ऊक | बालूक |
आ + उ | धरती + उक | धरतीक |
अ + उ | जला + उक | जलूक |
आ + ऊ | अग्नि + ऊक | अग्नूक |
अ + उ | शिल्प + उक | शिल्पूक |
आ + ऊ | वायु + ऊक | वायूक |
अ + ऊ | कर्ता + ऊक | कर्तूक |
आ + उ | शक्ति + ऊक | शक्तिूक |
(ग) अ/आ + ऋ = अर्
स्वर | उदाहरण | संधि परिणाम |
अ + ऋ | जल + ऋषि | जलरिषि |
अ + ऋ | मन + ऋषि | मनरिषि |
अ + ऋ | कर्ता + ऋषि | कर्तारिषि |
आ + ऋ | महा + ऋषि | महारिषि |
आ + ऋ | राजा + ऋषि | राजारिषि |
अ + ऋ | जन + ऋषि | जनरिषि |
आ + ऋ | चंद्र + ऋषि | चंद्रारिषि |
अ + ऋ | धर + ऋषि | धररिषि |
आ + ऋ | विद्या + ऋषि | विद्यारिषि |
अ + ऋ | बुद्धि + ऋषि | बुद्धिरिषि |
अ + ऋ | हर्ष + ऋषि | हर्षरिषि |
आ + ऋ | शक्ति + ऋषि | शक्तिरिषि |
अ + ऋ | कला + ऋषि | कलारिषि |
आ + ऋ | सागर + ऋषि | सागरारिषि |
अ + ऋ | गुण + ऋषि | गुणरिषि |
आ + ऋ | देश + ऋषि | देशरिषि |
अ + ऋ | धर्म + ऋषि | धर्मरिषि |
आ + ऋ | देवता + ऋषि | देवतारिषि |
अ + ऋ | पवित्र + ऋषि | पवित्ररिषि |
आ + ऋ | विद्या + ऋषि | विद्यारिषि |
अन्य गुण संधि के उदाहरण (Gun Sandhi ke Udaharan)
स्वर | उदाहरण | संधि परिणाम |
अ + इ | हरि + इन्द्र | हरिन्द्र |
अ + ई | बालक + ईश्वर | बालेश्वर |
आ + इ | महा + इन्द्र | महेन्द्र |
आ + ई | राम + ईश | रामेश |
अ + उ | सुख + उर | सुखुर |
अ + ऊ | जगत + ऊष्मा | जगऊष्मा |
आ + उ | विद्या + ऊन | विद्याून |
आ + ऊ | पतंग + ऊर | पतंगूर |
अ + ऋ | जल + ऋषि | जलरिषि |
अ + इ | राघव + इन्द्र | राघविन्द्र |
अ + ई | कुमुद + ईश | कुमुदेश |
आ + इ | चंद्र + इन्द्र | चंद्रेन्द्र |
अ + उ | धर + उमा | धरुम |
अ + ऊ | गगन + ऊर | गगनूर |
आ + उ | राज + उषा | राजुषा |
आ + ऋ | धरती + ऋषि | धरतीरिषि |
अ + इ | देव + इंद्र | देवेंद्र |
अ + ई | धन + ईश | धनईश |
आ + इ | महेश + इन्द्र | महेशेन्द्र |
आ + ई | विद्या + ईश | विद्यारेश |
अ + उ | ताज + उर | ताजुर |
अ + ऊ | खेत + ऊन | खेतून |
आ + उ | शांति + ऊषा | शांतिोषा |
आ + इ | राजा + इंद्र | राजेंद्र |
अ + इ | भगवती + इन्द्र | भगवतीेंद्र |
अ + ई | प्रकाश + ईश्वर | प्रकाशेश्वर |
आ + इ | कर्ण + इन्द्र | कर्णेंद्र |
अ + उ | गोधूलि + उमा | गोधूलिमा |
आ + ऋ | विद्या + ऋषि | विद्यारिषि |
अ + इ | हरि + इंद्र | हरेंद्र |
अ + ई | धरन + ईश्वर | धरनेश्वर |
आ + उ | घट + उषा | घटुशा |
अ + ऊ | पट + ऊर | पटूर |
आ + ई | जया + ईश | जयेश |
अ + इ | राम + इंद्र | रामेन्द्र |
आ + ऋ | महाकाल + ऋषि | महाकालरिषि |
अ + ऊ | जल + ऊष्मा | जलऊष्मा |
अ + ई | दिव्य + ईश्वर | दिव्येश्वर |
आ + इ | तारा + इन्द्र | तारेंद्र |
अ + उ | बल + उषा | बलूषा |
आ + ऊ | शक्ति + ऊन | शक्तिून |
अ + ऋ | कर + ऋषि | कररिषि |
आ + इ | संगीत + इन्द्र | संगीतेंद्र |
अ + इ | हरि + इश | हरिश |
अ + ई | हर्ष + ईश | हर्षेश |
आ + उ | काला + उषा | कालाूषा |
अ + उ | कुटीर + उषा | कुटीरूषा |
आ + इ | उपेंद्र + इंद्र | उपेंद्रेंद्र |
अ + ऋ | जल + ऋषि | जलरिषि |
आ + ई | सहस्र + ईश | सहस्रेश |
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FAQs
गुण संधि क्या है?
गुण संधि एक प्रक्रिया है, जिसमें स्वर संयोजन के कारण दो या अधिक शब्दों के बीच एक नया स्वर उत्पन्न होता है। यह विशेष रूप से संस्कृत और हिंदी में देखा जाता है।
गुण संधि के मुख्य स्वर कौन से हैं?
गुण संधि में मुख्य रूप से ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, और ‘ऋ’ स्वर शामिल होते हैं।
गुण संधि के प्रकार क्या हैं?
गुण संधि के तीन मुख्य प्रकार हैं:
अ/आ + इ/ई = ए
अ/आ + उ/ऊ = ओ
अ/आ + ऋ = अर्
क्या गुण संधि सभी भाषाओं में होती है?
नहीं, गुण संधि मुख्यतः संस्कृत, हिंदी और कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में पाई जाती है।
गुण संधि का प्रयोग क्यों किया जाता है?
गुण संधि का प्रयोग शब्दों की सुंदरता और अर्थ को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह भाषा की व्याकरणिकता को बनाए रखने में भी मदद करता है।
गुण संधि के उदाहरण क्या हैं?
कुछ उदाहरण हैं:
अ + इ = ए → हरि + इन्द्र = हरिन्द्र
आ + ई = ए → महा + ईश = महेश
अ + ऋ = अर् → जल + ऋषि = जलरिषि
गुण संधि और सामासिक संधि में क्या अंतर है?
गुण संधि में स्वर संयोजन से नया स्वर उत्पन्न होता है, जबकि सामासिक संधि में दो या अधिक शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं।
गुण संधि के नियम क्या हैं?
गुण संधि के नियम स्वर की प्रकृति पर आधारित होते हैं। जैसे:
‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘इ’ या ‘ई’ होने पर ‘ए’ बनता है।
‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘उ’ या ‘ऊ’ होने पर ‘ओ’ बनता है।
‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘ऋ’ होने पर ‘अर’ बनता है।
गुण संधि की पहचान कैसे करें?
गुण संधि की पहचान तब होती है जब कोई स्वर संयोजन से नया स्वर उत्पन्न होता है और वह नए शब्द के रूप में प्रयोग होता है।
गुण संधि का अभ्यास कैसे करें?
गुण संधि का अभ्यास शब्दों के संयोजन से किया जा सकता है। छात्रों को उदाहरणों के माध्यम से संधि के नियम समझाने से यह प्रक्रिया सरल होती है।