डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय समाज के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक, और संविधान निर्माता थे, जिन्होंने भारतीय सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में स्थित महू में हुआ था, जिसे आज डॉ. अंबेडकर नगर के नाम से जाना जाता है। अंबेडकर जी का जन्म दलित जाति में हुआ था, जिसे अछूत जाति के रूप में जाना जाता था, और यही कारण था कि उनके बचपन में कई कठिनाइयों और भेदभाव का सामना करना पड़ा।
डॉ. अंबेडकर ने शिक्षा को अत्यंत महत्व दिया और अपने जीवन में अनेक उच्च डिग्रियाँ प्राप्त कीं। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से बी.ए., कोलंबिया विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएच.डी., और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एमएससी और डीएससी की डिग्री प्राप्त की। वे एक प्रभावशाली वकील, प्रोफेसर, राजनीतिज्ञ, और समाज सुधारक के रूप में जाने जाते हैं।
उनकी प्रमुख उपलब्धियों में भारतीय संविधान का निर्माण, दलितों के अधिकारों की रक्षा, और सामाजिक सुधारों की दिशा में कई महत्वपूर्ण प्रयास शामिल हैं। डॉ. अंबेडकर का जीवन और उनके कार्य आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं, और उनकी शिक्षाएँ और विचार समानता और न्याय के लिए संघर्षरत लोगों के लिए मार्गदर्शक हैं।
विवरण | जानकारी |
जन्म | 14 अप्रैल 1891, मध्य प्रदेश, भारत |
जन्म का नाम | भिवा, भीम, भीमराव, बाबासाहेब अंबेडकर |
अन्य नाम | बाबासाहेब अंबेडकर |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | बौद्ध धर्म |
शैक्षिक सम्बद्धता | • मुंबई विश्वविद्यालय (बी॰ए॰) |
• कोलंबिया विश्वविद्यालय (एम॰ए॰, पीएच॰डी॰, एलएल॰डी॰) | |
• लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स (एमएस०सी०, डीएस॰सी॰) | |
• ग्रेज इन (बैरिस्टर-एट-लॉ) | |
पेशा | विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद, दार्शनिक, लेखक, पत्रकार, समाजशास्त्री, मानवविज्ञानी, धर्मशास्त्री, इतिहासविद्, प्रोफेसर, सम्पादक |
व्यवसाय | वकील, प्रोफेसर, राजनीतिज्ञ |
जीवन साथी | • रमाबाई अंबेडकर (विवाह 1906 – निधन 1935) |
• डॉ. सविता अंबेडकर (विवाह 1948 – निधन 2003) | |
बच्चे | यशवंत अंबेडकर |
राजनीतिक दल | • शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन |
• स्वतंत्र लेबर पार्टी | |
• भारतीय रिपब्लिकन पार्टी | |
अन्य राजनीतिक संबद्धताएं | • बहिष्कृत हितकारिणी सभा |
• समता सैनिक दल | |
शैक्षिक संगठन | • डिप्रेस्ड क्लासेस एज्युकेशन सोसायटी |
• द बॉम्बे शेड्युल्ड कास्ट्स इम्प्रुव्हमेंट ट्रस्ट | |
• पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी | |
धार्मिक संगठन | भारतीय बौद्ध महासभा |
पुरस्कार/ सम्मान | • बोधिसत्व (1956) |
• भारत रत्न (1990) | |
• पहले कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाईम (2004) | |
• द ग्रेटेस्ट इंडियन (2012) | |
मृत्यु | 6 दिसम्बर 1956 (उम्र 65) |
समाधि स्थल | चैत्य भूमि, मुंबई, महाराष्ट्र |
बाबासाहेब अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन
डॉ. भीमराव अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों और संघर्ष से भरा था। 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ गांव में जन्मे अंबेडकर का परिवार आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से असुविधाजनक स्थिति में था। उनके पिता, रामजी मालो, एक सैन्य अधिकारी थे और परिवार को एक गरीब आवास में रहना पड़ता था, जहाँ एक ही कमरे में पहले से ही गरीब लोग निवास करते थे। इस स्थिति के कारण अंबेडकर और उनके पिता बारी-बारी से सोते थे, और अंबेडकर जब भी अपने पिता के सोने का समय होता था, तब दीपक की हल्की सी रोशनी में पढ़ाई किया करते थे।
अंबेडकर की शिक्षा का रास्ता भी जातिवाद से भरा था; उन्होंने संस्कृत पढ़ने की इच्छा जताई, लेकिन छुआछूत की प्रथा और उनकी जाति के कारण उन्हें यह अनुमति नहीं थी। यह विडंबना थी कि विदेशी लोग संस्कृत पढ़ सकते थे, जबकि वे नहीं। इसके बावजूद, अंबेडकर ने अपमानजनक स्थितियों का धैर्य और वीरता के साथ सामना किया और अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने मुंबई जाकर कॉलेज की पढ़ाई जारी रखी और अंततः कानून और अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। उनके प्रारंभिक जीवन ने उनके संघर्ष और शिक्षा के प्रति समर्पण को उजागर किया, जो बाद में उनके सामाजिक न्याय और समानता के लिए किए गए प्रयासों का आधार बना।
बाबासाहेब अंबेडकर की प्रारंभिक शिक्षा
डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रारंभिक शिक्षा उनकी बौद्धिक यात्रा की नींव रखती है। सन् 1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद, उन्होंने ‘एली फिंस्टम कॉलेज’ से 1912 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, 1913 में उन्होंने भारतीय व्यापार पर एक शोध प्रबंध लिखा, जिसमें उनकी गहरी विद्वत्ता और विश्लेषणात्मक क्षमता प्रदर्शित हुई।
वर्ष 1915 में, अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर की डिग्री प्राप्त की और 1917 में पीएचडी की उपाधि हासिल की। उनके शोध का विषय ‘नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी’ था, जो उनकी भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
1917 में ही अंबेडकर ने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई। इसके बाद, उन्होंने लंदन जाकर अपने अधूरे शिक्षा को पूरा किया और एमएससी और बार एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। अंबेडकर उस युग के सबसे पढ़े-लिखे राजनेताओं और विचारकों में से एक थे। वे 64 विषयों में मास्टर थे, 9 भाषाओं के जानकार थे, और विश्व के सभी धर्मों के बारे में विस्तृत अध्ययन किया था। उनके व्यापक ज्ञान और बौद्धिक क्षमता ने उन्हें एक प्रमुख समाज सुधारक और विचारक के रूप में स्थापित किया।
बाबासाहेब अंबेडकर की उच्च शिक्षा
डॉ. भीमराव अंबेडकर की उच्च शिक्षा उनके बौद्धिक विकास और भविष्य के सामाजिक सुधार कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रही। 22 वर्ष की आयु में, उन्होंने 1915-1917 के बीच कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में अध्ययन किया। यहां उन्होंने जून 1915 में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की, जिसमें अर्थशास्त्र उनका प्रमुख विषय था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र, और मानव विज्ञान जैसे अन्य विषयों में भी ज्ञान प्राप्त किया। अपने स्नातकोत्तर अध्ययन के दौरान, अंबेडकर ने प्राचीन भारतीय वाणिज्य पर एक शोध प्रबंध प्रस्तुत किया, जो उनकी विद्वत्ता और भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति गहरी समझ को दर्शाता है।
अंबेडकर के लंदन में अध्ययन की यात्रा 1916-1922 के बीच चली। वहां उन्होंने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स के लिए दाखिला लिया और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया। लंदन में उन्होंने विधि अध्ययन और अर्थशास्त्र में गहन अध्ययन किया। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में रहते हुए, उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की थीसिस पर काम करना शुरू किया। हालांकि, प्रारंभिक आर्थिक कठिनाइयों के कारण, उनकी शिक्षा कुछ समय के लिए बाधित हुई।
अंबेडकर की उच्च शिक्षा ने उन्हें एक उत्कृष्ट विद्वान और विचारक के रूप में स्थापित किया और उनके सामाजिक और राजनीतिक कार्यों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया। उनकी शिक्षा और शोध ने उन्हें भारतीय समाज के विकास और सुधार के लिए गहरी अंतर्दृष्टि और विश्लेषणात्मक क्षमता दी।
बाबासाहेब अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी?
डॉ. भीमराव अंबेडकर की शैक्षिक उपलब्धियाँ अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उन्होंने कुल 32 डिग्रियाँ प्राप्त कीं और 9 भाषाओं में पारंगत थे। उनकी शिक्षा का विस्तार और विविधता उनकी बौद्धिक क्षमता और गहन ज्ञान का प्रमाण है। अंबेडकर ने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में 2 साल 3 महीने की अवधि में 8 साल की पढ़ाई पूरी की, जो उनकी लगन और समर्पण को दर्शाता है। वे लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑल साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति थे। यह डिग्री उनकी असाधारण विद्वत्ता और शिक्षा में गहरी रुचि को प्रमाणित करती है।
प्रथम विश्व युद्ध के कारण, अंबेडकर को भारत वापस लौटना पड़ा। वापस लौटने के बाद, उन्होंने बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में नौकरी शुरू की और बाद में सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति प्राप्त की। उनकी शैक्षिक यात्रा और उपलब्धियाँ उनकी असीम बुद्धिमत्ता और ज्ञान की प्रतीक हैं, जो उनके सामाजिक और राजनीतिक सुधार कार्यों के लिए आधारभूत साबित हुईं।
प्रयत्नशील सामाजिक सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के खिलाफ व्यापक प्रयास किए। उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू उनके सामाजिक सुधार के लिए किए गए प्रयत्न थे। अंबेडकर ने भारतीय समाज में जातिवाद, छुआछूत, और भेदभाव की प्रथाओं के खिलाफ संघर्ष किया और उन्हें समाप्त करने के लिए कई कदम उठाए।
ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन की स्थापना अंबेडकर ने की, जिसका उद्देश्य समाज में जाति आधारित भेदभाव और असमानताओं को खत्म करना था। इस संगठन के माध्यम से उन्होंने एक समान और न्यायपूर्ण समाज की दिशा में काम किया।
अंबेडकर ने समाज के विभिन्न पहलुओं में सुधार के लिए प्रयास किए, जैसे कि:
- छुआछूत की प्रथा का विरोध: उन्होंने ब्राह्मणों द्वारा लागू की गई छुआछूत की प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और इस प्रथा के समाप्ति के लिए आवाज उठाई।
- मंदिरों में प्रवेश का अधिकार: उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश की अनुमति देने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, जो सामाजिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
- भेदभाव और भेदभाव के खिलाफ अभियान: अंबेडकर ने शिक्षकों और अन्य सामाजिक संस्थाओं द्वारा दलितों के प्रति किए गए भेदभाव के खिलाफ भी अभियान चलाया।
भीम राव अंबेडकर जीवनी: छुआछूत विरोधी संघर्ष
डॉ. भीमराव अंबेडकर का छुआछूत विरोधी संघर्ष उनकी सामाजिक चेतना और साहसिकता का परिचायक था। उन्होंने बचपन से ही जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया और जीवनभर इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ लड़ते रहे। अंबेडकर ने जातिगत भेदभाव और छुआछूत के अनुभवों को गहराई से महसूस किया और इसे समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाए।
डॉ. अंबेडकर ने छुआछूत की प्रथा को समाप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1920 के दशक में, मुंबई में एक भाषण में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि यदि कभी व्यक्तिगत और देशहित के बीच टकराव होगा, तो वे देशहित को प्राथमिकता देंगे। लेकिन, जब दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा, तो वे दलित जातियों को प्राथमिकता देंगे। यह बयान उनके सामाजिक न्याय के प्रति अडिग प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
1927 में, डॉ. अंबेडकर ने अछूतों के मंदिर प्रवेश अधिकार के लिए सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के दौरान, उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया और समाज में समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इसके फलस्वरूप, उनकी पहल ने छुआछूत की प्रथा को चुनौती दी और समाज में सुधार की नींव रखी।
1937 में, डॉ. अंबेडकर ने मुंबई उच्च न्यायालय में एक महत्वपूर्ण मुकदमा जीत लिया, जिसमें उन्होंने सामाजिक भेदभाव के खिलाफ कानूनी दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। इस मुकदमे ने यह स्पष्ट किया कि छुआछूत की प्रथा और जातिगत भेदभाव के खिलाफ कानूनी और सामाजिक लड़ाई में अंबेडकर की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
डॉ. अंबेडकर का छुआछूत विरोधी संघर्ष और उनके द्वारा किए गए प्रयास दलित समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बने और समाज में समानता और सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए। उनके संघर्ष और नेतृत्व ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी और छुआछूत के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन को जन्म दिया।
डॉ भीमराव अंबेडकर बनाम गांधी जी
डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच 1930 और 1940 के दशक में एक महत्वपूर्ण वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष था। दोनों नेताओं के विचार और दृष्टिकोण में कई बुनियादी अंतर थे, जो उनके समाज सुधार के दृष्टिकोण और राजनीतिक विचारधारा में परिलक्षित होते थे।
पुणे समझौता (1932): 1932 में, डॉ. अंबेडकर और गांधीजी के बीच एक महत्वपूर्ण विवाद उत्पन्न हुआ था जब गांधीजी ने ‘अनटचेबल्स’ (अछूतों) के लिए अलग निर्वाचनी प्रतिनिधित्व की व्यवस्था का विरोध किया। अंबेडकर ने अछूतों के लिए विशेष निर्वाचनी प्रतिनिधित्व की मांग की, जिसे गांधीजी ने ‘अछूतों’ के साथ सामाजिक एकता को खतरे के रूप में देखा। इस विवाद को सुलझाने के लिए, पुणे समझौता हुआ, जिसमें गांधीजी और अंबेडकर ने आपसी सहमति से एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत, अछूतों को निश्चित सीटों पर प्रतिनिधित्व देने के बजाय, उनके लिए आरक्षित सीटों की व्यवस्था की गई।
1945 में चुनौती: वर्ष 1945 में, अंबेडकर ने महात्मा गांधी के दावे को चुनौती दी और ‘व्हॉट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स’ (What Congress and Gandhi Have Done to the Untouchables) नामक लेख लिखा। इस लेख में, अंबेडकर ने गांधीजी और कांग्रेस के नेतृत्व की आलोचना की और यह तर्क किया कि उन्होंने अछूतों के लिए पर्याप्त सामाजिक और राजनीतिक सुधार नहीं किए। अंबेडकर ने गांधीजी और कांग्रेस की आलोचना करते हुए यह आरोप लगाया कि वे अछूतों की सामाजिक स्थिति को सुधारने में विफल रहे हैं और उनके अधिकारों की रक्षा करने में नाकाम रहे हैं।
ग्राम पंचायत व्यवस्था की आलोचना: 1932 में, अंबेडकर ने मुंबई विधानसभा में ग्राम पंचायत व्यवस्था की आलोचना की। उन्होंने इसे भारतीय सार्वजनिक जीवन के लिए एक अभिशाप बताया और तर्क किया कि ग्राम पंचायतों की प्राचीन व्यवस्था भारत में राष्ट्रीय भावना और राष्ट्रवाद के निर्माण में बाधक है। अंबेडकर ने ग्राम पंचायतों की व्यवस्था को ग्रामीण प्रजातंत्र के रूप में प्रशंसा किए जाने का विरोध किया और इसे भारत में सामाजिक और राजनीतिक प्रगति के लिए एक अवरोधक के रूप में देखा।
इन मुद्दों के माध्यम से, अंबेडकर ने गांधीजी और कांग्रेस के सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण की आलोचना की और अछूतों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए एक सशक्त और समान अवसरों की मांग की। अंबेडकर का यह संघर्ष और उनकी विचारधारा भारतीय समाज में समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव लाने का प्रयास थी।
डॉ भीमराव अंबेडकर राजनीतिक सफर
डॉ. भीमराव अंबेडकर का राजनीतिक सफर भारतीय राजनीति में उनके महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है। 1936 में, उन्होंने स्वतंत्र मजदूर पार्टी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मजदूरों और वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा करना था। इस पार्टी ने 1937 के केंद्रीय विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर विजय प्राप्त की, जो अंबेडकर के नेतृत्व की महत्वपूर्ण सफलता थी। इसके बाद, उन्होंने पार्टी को आल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट पार्टी में बदल दिया और 1946 के संविधान सभा के चुनाव में अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व किया, हालांकि इस चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षाकृत खराब रहा।
अंबेडकर ने महात्मा गांधी और कांग्रेस द्वारा अछूतों को ‘हरिजन’ नाम देने का विरोध किया, यह मानते हुए कि यह शब्द अछूतों की स्थिति को कम करके दर्शाता था। उन्होंने तर्क किया कि अछूत भी समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें सामान्य व्यक्तियों की तरह समान सम्मान मिलना चाहिए। उनके दृष्टिकोण ने सामाजिक न्याय के लिए उनकी प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया।
डॉ. अंबेडकर को रक्षा सलाहकार समिति में शामिल किया गया और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में लेबर मंत्री बनाया गया, जहां उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लिए। 1947 में स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में, अंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाई और सुनिश्चित किया कि संविधान भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के लिए समानता और न्याय प्रदान करे। उनके प्रयासों और नेतृत्व ने भारतीय राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाए और संविधान को एक समृद्ध और समावेशी दिशा दी।
पुरस्कार एवं सम्मान
डॉ. भीमराव अंबेडकर को उनके महान कार्यों के लिए कई महत्वपूर्ण पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जो उनकी समाज सुधारक गतिविधियों और भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान की मान्यता प्रदान करते हैं।
- स्मारक: डॉ. अंबेडकर का स्मारक दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान 26 अलीपुर रोड में स्थापित किया गया है, जो उनके जीवन और कार्यों को सम्मानित करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।
- अंबेडकर जयंती: हर साल 14 अप्रैल को डॉ. अंबेडकर की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है, जो उनके योगदान और समाज सुधारक दृष्टिकोण की सराहना का प्रतीक है।
- भारत रत्न (1990): डॉ. अंबेडकर को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनके समाज सुधारक प्रयासों और भारतीय संविधान के निर्माण में उनके योगदान की उच्च मान्यता है।
- सार्वजनिक संस्थानों के नाम: कई सार्वजनिक संस्थानों का नाम डॉ. अंबेडकर के सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है, जैसे कि हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में डॉ. अंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय और बी आर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर।
- अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा: नागपुर में स्थित डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, जो पहले सोनेगांव हवाई अड्डा के नाम से जाना जाता था, उनके सम्मान में नामित किया गया है।
- भारतीय संसद भवन: डॉ. अंबेडकर का एक बड़ा आधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है, जो उनकी प्रतिष्ठा और उनके योगदान की मान्यता का प्रतीक है।
डॉ भीमराव अंबेडकर का निधन
डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ। वह 1948 से मधुमेह (डायबिटीज) से पीड़ित थे और उनकी तबियत 1954 तक बहुत खराब रही। 3 दिसंबर 1956 को, उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपि “बुद्ध और धम्म” को पूरा किया। इसके बाद, 6 दिसंबर 1956 को, उन्होंने दिल्ली में अपने घर में अंतिम सांस ली। डॉ. अंबेडकर का अंतिम संस्कार चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में किया गया। उनकी पुण्यतिथि पर 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के रूप में सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है, जो उनके योगदान और समाज सुधारक दृष्टिकोण की मान्यता का प्रतीक है।
डॉ भीमराव अंबेडकर की रचनावली
डॉ. भीमराव अंबेडकर की रचनावली उनकी बौद्धिक क्षमता, समाज सुधारक दृष्टिकोण, और संविधान निर्माण में उनके योगदान को दर्शाती है। उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं:
- “प्रेशर ऐंड पोलिटिक्स” (1927): इस पुस्तक में डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज में जाति व्यवस्था और राजनीतिक दबावों का विश्लेषण किया है।
- “अछूतों की स्थिति” (1928): इस पुस्तक में उन्होंने अछूतों की सामाजिक स्थिति और उनके अधिकारों पर चर्चा की है।
- “अंबेडकर और हिंदू धर्म” (1935): इस पुस्तक में डॉ. अंबेडकर ने हिंदू धर्म की आलोचना की और उसके जातिवादी पहलुओं पर प्रकाश डाला।
- “बुद्ध और उनका धम्म” (1957): यह डॉ. अंबेडकर की अंतिम पांडुलिपि थी, जिसमें उन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और उनके सामाजिक प्रभाव पर प्रकाश डाला।
- “थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक रीजनलिज़म” (1929): इस पुस्तक में उन्होंने भाषाई क्षेत्रीयता के विषय पर विचार किया और उसके समाज पर प्रभावों का विश्लेषण किया।
- “द अनटचेबल्स: हू वेर देयर ओरिजिन” (1948): इस पुस्तक में उन्होंने अछूतों की उत्पत्ति और उनके समाज में स्थान की चर्चा की।
- “ड्राफ्टिंग कमिटी रिपोर्ट” (1947): भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष के रूप में, डॉ. अंबेडकर ने इस रिपोर्ट में संविधान के प्रमुख मसौदों और अनुशासन पर विचार किया।
- “कास्ट इन इंडिया” (1936): इस पुस्तक में उन्होंने जाति व्यवस्था की जड़ों और इसके सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण किया।
डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकें
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय समाज और राजनीति पर अपने गहरे विचारों को व्यक्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं। यहाँ उनके द्वारा लिखित कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं:
- “भारत का राष्ट्रीय अंश”
- “भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण”
- “भारत में लघु कृषि और उनके उपचार”
- “मूलनायक”
- “ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेंद्रीकरण”
- “रुपए की समस्या: उद्भव और समाधान”
- “ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय”
- “बहिष्कृत भारत”
- “जनता”
- “जाति विच्छेद”
- “संघ बनाम स्वतंत्रता”
- “पाकिस्तान पर विचार”
- “श्री गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति”
- “रानाडे, गांधी और जिन्ना”
- “शूद्र कौन और कैसे”
- “भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म”
- “महाराष्ट्र भाषाई प्रांत”
बाबासाहेब अंबेडकर के बारे में रोचक तथ्य
डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन और उनके कार्यों के बारे में कई रोचक तथ्य हैं जो उनकी बहुपरकारी और प्रेरणादायक यात्रा को उजागर करते हैं:
- अशोक चक्र: भारत के राष्ट्रीय ध्वज पर अशोक चक्र लगाने का श्रेय डॉ. भीमराव अंबेडकर को जाता है। उन्होंने इसे भारतीय ध्वज के केंद्रीय हिस्से के रूप में अपनाने की सिफारिश की थी।
- भाषाओं का ज्ञान: डॉ. अंबेडकर लगभग 9 भाषाओं के जानकार थे, जिनमें संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, और अन्य शामिल हैं।
- धर्मों की पढ़ाई: उन्होंने 21 साल की उम्र तक लगभग सभी प्रमुख धर्मों की गहन अध्ययन किया, जिससे उन्हें विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक विचारधाराओं का व्यापक ज्ञान प्राप्त हुआ।
- अर्थशास्त्र में PhD: डॉ. अंबेडकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अर्थशास्त्र में PhD की डिग्री विदेश में प्राप्त की। उन्होंने यह डिग्री कोलंबिया विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
- डिग्रियों की संख्या: उनके पास लगभग 32 डिग्रियाँ थीं, जो उनकी शिक्षा और ज्ञान की व्यापकता को दर्शाती हैं।
- पहले कानून मंत्री: स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर थे, जिन्होंने भारतीय संविधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- लोकसभा चुनाव: बाबासाहेब ने दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों बार हार का सामना करना पड़ा।
- जाति का मुद्दा: डॉ. अंबेडकर हिन्दू महार जाति से थे, जिसे समाज द्वारा अछूत माना जाता था, और उन्होंने इस जातिवाद के खिलाफ अपने जीवन भर संघर्ष किया।
- धारा 370: डॉ. अंबेडकर कश्मीर में धारा 370 के खिलाफ थे, जो विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था।
बाबासाहेब अंबेडकर के कुछ महान विचार
डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचार उनके सामाजिक न्याय, समानता, और मानवाधिकारों के प्रति गहरे समर्पण को दर्शाते हैं। यहाँ उनके कुछ महान विचार प्रस्तुत हैं:
- “संविधान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह हर किसी को समान अधिकार प्रदान करता है।”
- “शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं।”
- “जाति एक समाजिक अपराध है, यह मानवता के खिलाफ है।”
- “हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए, हमें अपने अधिकारों को समझना और उनका उपयोग करना होगा।”
- “समानता केवल एक आदर्श नहीं है, बल्कि एक जीवनशैली है जो समाज को एकजुट करती है।”
- “सच्ची स्वतंत्रता का मतलब है कि आप अपनी पसंद के अनुसार जीवन जी सकें।”
- “भेदभाव के खिलाफ संघर्ष एक निरंतर यात्रा है, न कि एक दिन की लड़ाई।”
- “धर्म का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देना है।”
आशा है कि आपको यह ब्लॉग “Dr Bhimrao Ambedkar Biography” पसंद आया होगा। यदि आप कोट्स पर और ब्लॉग्स पढ़ना चाहते हैं, तो iaspaper के साथ जुड़े रहें।
FAQs
डॉ. भीमराव अंबेडकर कौन थे?
डॉ. भीमराव अंबेडकर (1891-1956) भारतीय समाज सुधारक, अर्थशास्त्री, और भारतीय संविधान के निर्माता थे। वे दलित समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे और भारत में सामाजिक और कानूनी समानता के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
डॉ. अंबेडकर ने कौन-कौन सी प्रमुख किताबें लिखीं?
डॉ. अंबेडकर ने कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी, जिनमें “अनटचेबल्स: व्हाट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स”, “द ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ इंडिया”, और “भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म” शामिल हैं।
डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान तैयार करने में कौन-कौन सी भूमिकाएँ निभाईं?
डॉ. अंबेडकर भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष थे और उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति का नेतृत्व किया। उनका काम भारतीय संविधान को रूप देने में महत्वपूर्ण था, जिसमें समानता, स्वतंत्रता, और न्याय के सिद्धांत शामिल थे।
डॉ. अंबेडकर को कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए?
डॉ. अंबेडकर को मरणोपरांत 1990 में भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ। उनके सम्मान में कई सार्वजनिक संस्थानों और स्थानों का नाम रखा गया, जैसे डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट नागपुर।
डॉ. अंबेडकर की शिक्षा के बारे में क्या जानकारी है?
डॉ. अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की और कानून की पढ़ाई भी की।
डॉ. अंबेडकर ने भारतीय समाज में क्या सुधार किए?
डॉ. अंबेडकर ने जातिवाद, छुआछूत, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने हिंदू धर्म में सुधार करने के लिए कई प्रयास किए और अंततः बौद्ध धर्म को अपनाया। उनके कार्यों से दलितों को सामाजिक न्याय और समानता प्राप्त करने में मदद मिली।
डॉ. अंबेडकर का निधन कब और कैसे हुआ?
डॉ. अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ। वे मधुमेह से पीड़ित थे और अपने अंतिम दिनों में स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति-रिवाजों से किया गया।
डॉ. अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान क्या था?
डॉ. अंबेडकर का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संविधान के निर्माण में था। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कई कानून और संविधानों का निर्माण किया।
डॉ. अंबेडकर के किस आंदोलन ने समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाए?
डॉ. अंबेडकर के “चावदार तालाब आंदोलन” और “पुणे समझौता” जैसे आंदोलनों ने छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ महत्वपूर्ण बदलाव लाए और सामाजिक समानता की दिशा में कदम बढ़ाए।
डॉ. अंबेडकर के विचार आज के समाज में कितने प्रासंगिक हैं?
डॉ. अंबेडकर के विचार आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। उनकी अवधारणाएं समानता, सामाजिक न्याय, और अधिकारों की रक्षा आज भी समाज में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। उनके विचार और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं और समाज में सुधार के लिए मार्गदर्शक हैं।