हिंदी व्याकरण में संज्ञा, सर्वनाम, कारक, और विशेषण की तरह ही छंद (Chhand) का भी महत्वपूर्ण स्थान है। छंद एक विशेष प्रकार की लय और अनुशासन के साथ रचित कविता की संरचना को दर्शाता है। यह कविता की गूंज और ताल को निर्धारित करता है, जिससे कविता की सुनने की सुखद अनुभूति होती है।
छंद की परिभाषा (Chhand ki Paribhasha): छंद को कविता में वर्णों और मात्राओं की विशेष व्यवस्था और लय के आधार पर निर्मित किया जाता है। यह कविता की लयात्मकता को बनाए रखता है और उसकी विशेषता को दर्शाता है।
छंद के भेद: छंद मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:
- मात्रिक छंद: इसमें मात्राओं की गणना के आधार पर छंद की रचना की जाती है।
- वर्णिक छंद: इसमें वर्णों की गणना के आधार पर छंद का निर्माण होता है।
- वर्णिक वृत छंद: यह वर्णों और उनके क्रम के अनुसार रचित छंद होता है।
छंद के उदाहरण (Chhand ke Udaharan): छंद के उदाहरणों में चौपाई, दोहा, सोरठा, और मुक्तक छंद शामिल हैं। इनका उपयोग कविता को सुंदर और लयात्मक बनाने के लिए किया जाता है।
छंद एक ऐसा तत्व है जो कविता को विशेष लय और संरचना प्रदान करता है, और इसकी समझ से कविता की गहराई और सुंदरता को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। इसलिए, यह स्कूली और प्रतियोगी परीक्षाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
छंद की परिभाषा
छंद कविता की ऐसी विधा है जिसमें अक्षरों की संख्या, मात्रा, गणना, और गति को विशिष्ट क्रम में रखा जाता है। यह कविता की लय और ताल को बनाए रखने में मदद करता है और इसके द्वारा कविता की सौंदर्यता बढ़ जाती है। ‘छंद’ शब्द संस्कृत की ‘चद’ धातु से निकला है, जिसका अर्थ होता है ‘खुश करना’ या ‘आनंद देना’।
छन्दों का विवेचन
छंदों का विवेचन (Chhand ka Vivechan) एक महत्वपूर्ण अध्ययन है जो विभिन्न छंदों की संरचना, लय और विशेषताओं को समझने में मदद करता है। यहाँ विभिन्न छंदों का विवेचन विस्तार से किया गया है:
इन्द्रवज्रा (Indravajra):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की दो पंक्तियाँ होती हैं।
- विशेषता: यह छंद विशेष रूप से संस्कृत और हिंदी कविता में प्रयोग होता है। इसके द्वारा कवि लय और छंद की विविधता को प्रकट करता है।
उपेन्द्रवज्रा (Upendravajra):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की चार पंक्तियाँ होती हैं।
- विशेषता: यह छंद लम्बे छंदों में से एक है और इसकी मात्रा और गणना की विशेषताएँ इसे एक अद्वितीय छंद बनाती हैं।
वसन्ततिलका (Vasantatilaka):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की दो पंक्तियाँ होती हैं, और प्रत्येक पंक्ति के अंत में एक निश्चित ताल और लय होता है।
- विशेषता: यह छंद वसंत ऋतु के सौंदर्य और खुशहाली को व्यक्त करता है और इसमें लयात्मकता की विशेषता होती है।
मालिनी (Malini):
- संरचना: इसमें 8 मात्राओं की चार पंक्तियाँ होती हैं, जिसमें एक पंक्ति के अंत में एक विशेष ताल होता है।
- विशेषता: यह छंद कविता में समृद्धि और सुगमता को बनाए रखने में मदद करता है और यह आमतौर पर हिंदी काव्य में प्रयोग होता है।
मजुमालिनी (Majumalini):
- संरचना: इसमें 8 मात्राओं की आठ पंक्तियाँ होती हैं, और प्रत्येक पंक्ति का विशेष लय और ताल होता है।
- विशेषता: यह छंद काव्य के विविधता को दर्शाता है और इसकी विशेष गणना और लय को बनाए रखने में सहायक होता है।
मन्दाक्रान्ता (Mandakranta):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की दो पंक्तियाँ होती हैं, और इसकी विशेषता यह है कि इसके अंत में एक विशेष ध्वनि होती है।
- विशेषता: यह छंद विशेष रूप से संस्कृत कविता में लोकप्रिय है और इसकी विशेष लय और ताल इसे अनूठा बनाते हैं।
शिखरिणी (Shikharini):
- संरचना: इसमें 8 मात्राओं की आठ पंक्तियाँ होती हैं, और प्रत्येक पंक्ति का विशेष लय और ताल होता है।
- विशेषता: यह छंद काव्य के संगीतात्मक पहलू को उजागर करता है और इसकी गणना और लय को बनाए रखने में मदद करता है।
वंशस्थ (Vamshasth):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की चार पंक्तियाँ होती हैं, और इसका विशेषता इसका विशेष गणना और ताल होता है।
- विशेषता: यह छंद काव्य के विविधता और लय को बनाए रखने में सहायक होता है।
द्रुतविलम्बित (Drutvilambit):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की दो पंक्तियाँ होती हैं, और इसमें विशेष रूप से तीव्रता और विलंबिता का उपयोग होता है।
- विशेषता: यह छंद कविता के ताल और गति को विशेष रूप से दर्शाता है।
मत्तगयन्द (Mattgayand) या (मालती):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की चार पंक्तियाँ होती हैं, और इसका विशेषता इसका विशेष ताल और गणना होती है।
- विशेषता: यह छंद विशेष रूप से सौंदर्य और लय को बनाए रखने में मदद करता है।
सुन्दरी (Sundari):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की दो पंक्तियाँ होती हैं, और इसका विशेषता इसका विशेष लय और ताल होता है।
- विशेषता: यह छंद कविता में सौंदर्य और लय को बनाए रखने में सहायक होता है।
सवैया (Savaiya):
- संरचना: इसमें 8-8 मात्राओं की दो पंक्तियाँ होती हैं, और प्रत्येक पंक्ति के अंत में एक विशेष ताल होता है।
- विशेषता: यह छंद विशेष रूप से हिंदी कविता में प्रयोग होता है और इसकी गणना और लय इसे अनूठा बनाते हैं।
छंद के उदाहरण
छंद के उदाहरण नीचे दिए गए हैं, जिसमें मात्रा और लय की विशेषता स्पष्ट की गई है:
इन्द्रवज्रा छंद:
I I IISI SI II SII
नदी की धारा बहती जाती।
II ISI II SI ISII
सूरज की किरणें चमकाती।
SI SI IIII IISS
चाँदनी रातों की छाया।
SII SI III II SS
रात की सुंदरता लुभाए।
उपेन्द्रवज्रा छंद:
I I SI IISI II SI
वन के झरने बहते शांत।
II SI II SI ISII
हरियाली छा जाती यहाँ।
SI SI IIII IISS
फूलों की खुशबू मनमोहक।
SII SI III II SS
संग संग बिछी सौंदर्य की धरा।
वसन्ततिलका छंद:
I I IISI II SII
वसंत ऋतु आई सुहानी।
II ISI II SI ISII
खुशबू से भर गई मनमानी।
SI SI IIII IISS
हर रंग में बसी रंगीनियाँ।
SII SI III II SS
जीवन में छा गई खुशियाँ।
मालिनी छंद:
I I SI IISI II SI
सूरज की किरणें बिखर जाएँ।
II SI II SI ISII
सप्ताह की रातें सुकून लाएँ।
SI SI IIII IISS
चाँदनी रौशनी से दिल बहलाए।
SII SI III II SS
सपनों की दुनिया सजीव बनाए।
मजुमालिनी छंद:
I I IISI II SI
धरती पर बिखरे हैं रंग।
II SI II SI ISII
हरियाली से भर गई संग।
SI SI IIII IISS
फूलों की खुशबू फैली हवा में।
SII SI III II SS
सृष्टि सुंदरता की छवि रचाए।
मन्दाक्रान्ता छंद:
I I IISI II SI
सपनों की राह में बसा।
II SI II SI ISII
खुशियों का रंग लहराया।
SI SI IIII IISS
रात की चाँदनी चमकाई।
SII SI III II SS
रूप सौंदर्य की छाया पाई।
शिखरिणी छंद:
I I IISI II SI
फूलों की बगिया बसी।
II SI II SI ISII
सपनों की दुनिया हसी।
SI SI IIII IISS
रात की चाँदनी लुभाए।
SII SI III II SS
सपनों में खो जाए मन।
वंशस्थ छंद:
I I IISI II SI
परंपरा की धारा बहती।
II SI II SI ISII
संग इतिहास की यादें बसी।
SI SI IIII IISS
कुल की गरिमा बनाए रखें।
SII SI III II SS
संस्कारों की राह दिखाएँ।
द्रुतविलम्बित छंद:
I I IISI II SI
तेज बहार की रफ्तार।
II SI II SI ISII
धीमेपन की छाया में प्यार।
SI SI IIII IISS
संगीत की लहरें लहराएँ।
SII SI III II SS
सपनों का रंग बिखराएँ।
मत्तगयन्द छंद:
I I IISI II SI
जीवन में सौंदर्य है बसा।
II SI II SI ISII
हर दिन की चमक दमक नया।
SI SI IIII IISS
खुशियों का संसार सजाया।
SII SI III II SS
सपनों का रंग भरा सारा।
सुन्दरी छंद:
I I IISI II SI
चाँदनी की रातें प्यारी।
II SI II SI ISII
फूलों की सुगंधि बिखर जाए।
SI SI IIII IISS
रात की रौशनी से सजाया।
SII SI III II SS
सपनों में खो जाए मन।
सवैया छंद:
I I IISI II SI
रात की चाँदनी की बातें।
II SI II SI ISII
सपनों की दुनिया में सवाएँ।
SI SI IIII IISS
संग संग रंग बिखराए।
SII SI III II SS
सुंदरता की राह दिखाए।
छंद के अंग
छंद के अंग कविता की संरचना और लय को व्यवस्थित करने के लिए महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। निम्नलिखित में छंद के प्रमुख अंगों की विस्तृत जानकारी दी गई है:
चरण/पद
छंद में प्रत्येक पंक्ति को चरण, पद या पाद कहा जाता है। यह छंद की संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और इसे आमतौर पर छंद की एक इकाई के रूप में देखा जाता है। चरण/पद छंद की लय और संरचना को व्यवस्थित करने में सहायक होता है। छंद में चरणों की संख्या और उनकी मात्रा निश्चित रहती है।
उदाहरण:
पद 1: बिन हरि कृपा मिल न सके मोहा।
पद 2: भजे सो भक्त जानिए सो।
पद 3: भक्ति का संग त्यागे सुभट।
पद 4: पर उपदेश मैं ना मानू।
विषम चरण: बिन हरि कृपा मिल न सके मोहा। (पद 1) समचरण: भजे सो भक्त जानिए सो। (पद 2) विषम चरण: भक्ति का संग त्यागे सुभट। (पद 3) समचरण: पर उपदेश मैं ना मानू। (पद 4)
पद 1: राम छवि के दुख तटि सुभाय।
पद 2: बिनु उपकारी सबु काज सिधाय।
पद 3: मन बिमल बिनु भेखा हरि ध्यान।
पद 4: रघुकुल नायक सगुनी सब जान।
विषम चरण: राम छवि के दुख तटि सुभाय। (पद 1) समचरण: बिनु उपकारी सबु काज सिधाय। (पद 2) विषम चरण: मन बिमल बिनु भेखा हरि ध्यान। (पद 3) समचरण: रघुकुल नायक सगुनी सब जान। (पद 4)
पद 1: चाँदनी रातें रंगीन होती हैं।
पद 2: सितारे भी चमकदार दिखाई देते हैं।
पद 3: फूलों की खुशबू हवाओं में घुल जाती है।
पद 4: हर कोई खुशियों में डूब जाता है।
विषम चरण: चाँदनी रातें रंगीन होती हैं। (पद 1) समचरण: सितारे भी चमकदार दिखाई देते हैं। (पद 2) विषम चरण: फूलों की खुशबू हवाओं में घुल जाती है। (पद 3) समचरण: हर कोई खुशियों में डूब जाता है। (पद 4)
वर्ण और मात्राएँ
वर्ण (Varn): वर्ण वह ध्वनि इकाई है जो भाषा की संरचना को व्यक्त करती है। वर्ण दो प्रकार के होते हैं:
ह्रस्व (लघु) वर्ण (Hrasva or Short Vowel): ह्रस्व वर्ण वे होते हैं जिनमें एक मात्र होती है। ये वर्ण लघु होते हैं और इनमें ध्वनि की लंबाई कम होती है। इन्हें (|) से प्रदर्शित किया जाता है।
उदाहरण:
अ (अल) – एक मात्रावाला लघु वर्ण।
इ (इम) – एक मात्रावाला लघु वर्ण।
उ (उप) – एक मात्रावाला लघु वर्ण।
क (कुल) – एक मात्रावाला लघु वर्ण।
कि (कित) – एक मात्रावाला लघु वर्ण।
- संयुक्ताक्षर: यदि संयुक्ताक्षर में जोर न लगाना पड़े, तो वह लघु माना जाता है। जैसे “तुम्हारा” में ‘तु’ को पढ़ते समय उस पर जोर नहीं पड़ता, अतः उसकी मात्रा लघु ही होगी।
- चंद्रबिंदु वाले वर्ण: जैसे ‘हँसी’ में ‘हँ’ वर्ण लघु है। ह्रस्व मात्राओं से युक्त वर्ण: जैसे ‘कि’, ‘कु’ आदि।
दीर्घ (गुरु) वर्ण (Deergha or Long Vowel): दीर्घ वर्ण वे होते हैं जिनमें दो मात्राएँ होती हैं। ये वर्ण लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखते हैं और इनमें ध्वनि की लंबाई अधिक होती है। इन्हें (S) से प्रदर्शित किया जाता है।
उदाहरण:
आ (आम) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
ई (दीप) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
ऊ (ऊपर) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
ऋ (ऋत) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
ए (ले) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
ऐ (ऐसे) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
ओ (सो) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
औ (औषधि) – दो मात्रावाला दीर्घ वर्ण।
- संयुक्ताक्षर: संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण जब भार पड़ते हैं, तो वे दीर्घ होते हैं। जैसे ‘सत्य’ में ‘स’, ‘मन्द’ में ‘म’, और ‘व्रज’ में ‘व’ गुरु है।
- अनुस्वार से युक्त वर्ण: जैसे ‘कंत’, ‘आनंद’ में ‘कं’ और ‘न’।
- विसर्गवाले वर्ण: जैसे ‘दुःख’ में ‘दुः’ और ‘निःसृत’ में ‘निः’ गुरु है।
- दीर्घ मात्राओं से युक्त वर्ण: जैसे ‘कौन’, ‘काम’, ‘कैसे’ आदि।
गति
गति कविता या छंद के पढ़ने के दौरान उत्पन्न होने वाली लय और ताल की प्रक्रिया होती है। यह छंद की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और कविता के प्रवाह को बनाए रखने में मदद करती है। गति का प्रमुख उद्देश्य छंद में एक व्यवस्थित लय और ताल को सुनिश्चित करना है।
यति
यति छंद में बीच-बीच में विराम लेने की स्थिति को कहते हैं। यति का उपयोग छंद में लय और प्रवाह को बनाए रखने के लिए किया जाता है। यति को दर्शाने के लिए विभिन्न चिन्हों का उपयोग होता है जैसे (,) (।) (1) (11) (?) (!) इत्यादि।
उदाहरण:
- कविता के हर छंद में यति के लिए कुछ निश्चित स्थान होते हैं, जहाँ रुककर पढ़ा जाता है। इससे छंद की लय और स्वरूप बनाए रहते हैं।
- यति छंद की भावनात्मक प्रभावशीलता और अर्थ को स्पष्ट करने में भी मदद करता है।
उदाहरण:
चरणों में तेरे बिछाकर फूल
(,) हृदय से तेरे मिलाते हैं।
(,) स्नेह की बुनाई में घुल
(,) हर सुख में तेरे लहराते हैं।
तुक
तुक छंद में समान स्वर या व्यंजन की स्थापन को कहते हैं। यह तुकांत और अतुकांत दो प्रकार की होती है।
तुकांत: जब छंद की पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ समान होती हैं, तो इसे तुकांत कहते हैं।
उदाहरण:
हमको बहुत ई भाती हिंदी।
हमको बहुत है प्यारी हिंदी।
अतुकांत: जब पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ समान नहीं होती हैं, तो इसे अतुकांत कहते हैं।
उदाहरण:
काव्य सर्जक हूँ
प्रेरक तत्वों के अभाव में
लेखनी अटक गई हैं
काव्य-सृजन हेतु
तलाश रहा हूँ उपादान।
गण
तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। गणों के आठ भेद हैं। उनके नाम, लक्षण, रूप और उदाहरण नीचे दिए गए हैं-
नाम | लक्षण | रूप | उदाहरण | उदाहरण |
मगण | तीनों गुरु | ऽऽऽ | मातारा | सावित्री |
नगण | तीनों लघु | ।।। | नसल | अनल |
भगण | आदि गुरु | ऽ।। | मानस | शंकर |
जगण | मध्य गुरु | ।ऽ। | जभान | गणेश |
सगण | अन्त्य गुरु | ।।ऽ | सलगा | कमला |
यगण | आदि लघु | ।ऽऽ | यमाता | भवानी |
रगण | मध्य लघु | ऽ।ऽ | राजभा | भारती |
छंद के प्रकार
मात्रिक छंद
- दोहा छंद
- चौपाई छंद
- सोरठा छंद
- रोला छंद
- गीतिका छंद
वर्णिक छंद
- सवैया छंद
- कवित्त छंद
- मालिनी छंद
- बरवै छंद
- छप्पय छंद
वर्णिक वृत छंद
- कुंडलियाँ छंद
- उल्लाला छंद
- आल्हा या वीर छंद
- सार छंद
- तांटक छंद
मुक्तक छंद
- रूपमाला छंद
- त्रिभंगी छंद
मुक्त या स्वच्छन्द छंद
मात्रिक छंद
मात्रिक छंद ऐसे छंद होते हैं जिनमें केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है, लघु और गुरु (वर्ण) का क्रम निर्धारित नहीं होता है। इन छंदों में मात्राओं की संख्या पर ध्यान दिया जाता है और इन्हें लघु या गुरु के अनुसार वर्गीकृत नहीं किया जाता है। मात्रिक छंदों की विशेषता यह है कि ये छंद मात्रा पर आधारित होते हैं, न कि वर्णमाला के लघु और गुरु पर।
- दोहा छंद
- सोरठा छंद
- रोला छंद
- गीतिका छंद
- हरिगीतिका छंद
- उल्लाला छंद
- चौपाई छंद
- बरवै (विषम) छं
- छप्पय छंद
- कुंडलियाँ छंद
- दिगपाल छंद
- आल्हा या वीर छंद
- सार छंद
- तांटक छंद
- रूपमाला छंद
- त्रिभंगी छंद
मात्रिक छंद के प्रकार
मात्रिक छंद को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:
सम मात्रिक छंद:
- सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती है।
- छंद के प्रत्येक चरण में वर्ण या मात्राएँ बराबर होती हैं।
- लय और ताल में समानता होती है।
उदाहरण:
- चौपाई छंद: प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।
- वंशस्थ छंद: इसमें भी चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती है।
अर्धसम मात्रिक छंद:
- चरणों के दो-दो समूह में मात्राओं की संख्या समान होती है।
- पहले और तीसरे चरण में एक विशेष संख्या की मात्राएँ होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में अलग संख्या की मात्राएँ होती हैं।
- छंद में प्रत्येक जोड़े के चरणों की मात्राएँ समान होती हैं, लेकिन प्रत्येक जोड़ा अलग संख्या में होता है।
उदाहरण:
- दोहा छंद: पहले और तीसरे चरण में 13 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 11 मात्राएँ होती हैं।
- सोरठा छंद: पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
विषम मात्रिक छंद:
- छंद के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या असमान होती है।
- चरणों की संख्या में भिन्नता और मात्राओं की संख्या में विविधता होती है।
- छंद में विभिन्न चरणों की संख्या और मात्रा की गणना भिन्न होती है।
उदाहरण:
- कवित्त छंद: प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं, जिसमें यति 16 और 15 वर्णों पर होती है।
- सवैया छंद: इसमें प्रत्येक चरण में 22 से 26 तक वर्ण होते हैं और वर्णों की संख्या में भिन्नता होती है।
प्रमुख मात्रिक छंद
चौपाई छंद:
- प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।
- चरण के अंत में जगण (I I S) या तगण (S I I) नहीं होता है।
- चरण के अंत में गुरु या लघु नहीं होता है।
उदाहरण:
- “जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,” “जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।”
- (पंक्ति में मात्राओं की गणना इस प्रकार है: I I I I S I II S I I S I)
सोरठा छंद:
- पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
- सम चरणों के आरंभ में जगण आना वर्जित है।
- विषम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है।
उदाहरण: “कपि करि हृदय विचार, दीन्हि मुद्रिका डारि तब।” “जनु असोक अंगार, लीन्हि हरषि उठिकर गहउ।”
हरिगीतिका:
- चार चरण होते हैं।
- प्रत्येक चरण में 16 और 12 के क्रम से कुल 28 मात्राएँ होती हैं।
- अंत में लघु गुरु का प्रयोग होता है।
उदाहरण: “वन बाग कूप तङाग सरिता, सुभग सब सक को कहीं” “मंगल विपुल तोरण पताका, केतु गृह गृह सोहहीं”
दोहा छंद:
- अर्धसममात्रिक छंद।
- पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
- चरण के अंत में लघु (1) होना आवश्यक है।
उदाहरण: “जहां मंथरा की तरह, बसते दासी-दास।” “आज्ञा-पालक राम को, मिलता है वनवास।”
द्रुतविलम्बित छंद:
- वर्णिक सम छंद।
- प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो क्रमशः नगण, भगण और रगण के रूप में लिखे जाते हैं।
- यति प्रत्येक चरण के अंत में होती है।
उदाहरण: “दिवस का अवसान समीप था,” “गगन था कुछ लोहित हो चला”
सवैया छंद:
- वर्णिक सम छंद।
- प्रत्येक चरण में 22 से 26 तक वर्ण होते हैं।
- ग्यारह भेद होते हैं।
उदाहरण: “लोरी सरासन संकट कौ, सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।”
कवित्त (मनहरण कवित्त) छंद:
- प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं।
- यति क्रमशः 16 व 15 वर्णों पर या 8,8,8, और 7 वर्णों पर होती है।
उदाहरण: “इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडव सुअंभ पर,” “रावण संदभ पर रघुकुल राज है।”
मालिनी छंद:
- प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं।
- वर्णों की गणना नगण, नगण, मगण, यगण, यगण के रूप में की जाती है।
उदाहरण: “प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के, सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।”
वर्णिक छंद:
- वर्णों की गणना ‘गण’ के क्रमानुसार की जाती है।
- चरणों की संख्या समान होती है।
- गुरु-लघु का क्रम निश्चित नहीं होता।
- दो भेद होते हैं: साधारण और दण्डक।
भेद:
- साधारण छंद: 1 से 26 तक वर्ण।
- दण्डक छंद: 26 से अधिक वर्ण।
- सम छंद: सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती है।
- अर्धसम छंद: दो-दो चरणों में मात्राओं की संख्या समान होती है।
- विषम छंद: चार से अधिक चरण वाले छंद।
चौपाई छंद की परिभाषा
चौपाई छंद एक प्रमुख मात्रिक छंद है, जो भारतीय काव्य में विशेष स्थान रखता है। इसमें प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। यह एक नियमित और सुसंगठित छंद है, जिसे विशेषकर हिंदी साहित्य, विशेषकर तुलसीदास की रचनाओं में, जैसे “रामचरितमानस” में प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया है।
उदाहरण:
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।
दोहा छंद की परिभाषा
दोहा छंद एक प्रमुख अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है, जो हिंदी काव्य में विशेष स्थान रखता है। यह विशेष रूप से संत कवियों की रचनाओं में प्रचलित है, जैसे कबीर, तुलसीदास, और सूरदास के काव्य में। इसमें चार चरण होते हैं, जिनके अनुसार मात्राएँ और यति निर्धारित होती हैं।
उदाहरण:
मरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई परे, श्याम हरित दुति होय।
सोरठा छंद की परिभाषा
सोरठा छंद एक अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है जो काव्य रचनाओं में विशेष रूप से प्रयुक्त होता है। यह दोहा छंद का उल्टा होता है और इसमें चार चरण होते हैं। इसके लक्षण निम्नलिखित हैं:
उदाहरण:
कुंद इंद सम देह, उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन।
वर्णिक छंद
वर्णिक छंद वह छंद है जिसकी रचना वर्णों की गणना के आधार पर की जाती है। इसमें लघु और गुरु की निश्चितता की बजाय वर्णों की संख्या पर ध्यान दिया जाता है। इसे ‘वर्ण-वृत’ भी कहा जाता है। वर्णिक छंद में गणों की प्रकृति और संख्या के आधार पर छंद की रचना होती है, जिसमें हर चरण में वर्णों की संख्या निश्चित होती है।
वर्णिक छंद के भेद:
साधारण वर्णिक छंद:
- वर्णों की संख्या 1 से 26 तक होती है।
- इसमें चरणों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम अनिवार्य नहीं होता है।
दण्डक वर्णिक छंद:
- वर्णों की संख्या 26 से अधिक होती है।
- इसमें भी चरणों की संख्या समान रहती है, लेकिन वर्णों की संख्या और गणविधान के आधार पर छंद रचित होता है।
मुक्तक छंद
मुक्तक छंद वह छंद है जिसमें वर्णों और मात्राओं की गणना नहीं की जाती। इसे छंद की संरचना की कोई विशेष बाध्यता नहीं होती, और इसमें कविता की स्वतंत्रता अधिक होती है। मुक्तक छंद में किसी भी निश्चित गणनात्मक या लयात्मक नियम का पालन नहीं किया जाता।
उदाहरण:
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
MCQs
छंद के किस अंग में वर्ण और मात्राओं की संख्या निर्धारित होती है?
A) यति
B) गण
C) चरण
D) तुक
उत्तर: B) गण
‘मगण’ का लक्षण क्या है?
A) तीन लघु वर्ण
B) एक गुरु और दो लघु वर्ण
C) तीन गुरु वर्ण
D) एक लघु और दो गुरु वर्ण
उत्तर: C) तीन गुरु वर्ण
‘नगण’ का रूप क्या है?
A) ऽ।।
B) ।।।
C) ऽ।।
D) ।ऽ।
उत्तर: B) ।।।
‘अर्धसम मात्रिक छंद’ के अंत में क्या होता है?
A) लघु
B) गुरु
C) यति
D) तगण
उत्तर: C) यति
‘चौपाई छंद’ में प्रत्येक चरण की कितनी मात्राएँ होती हैं?
A) 12
B) 16
C) 18
D) 20
उत्तर: B) 16
‘सोरठा छंद’ में पहले और तीसरे चरण की मात्राएँ कितनी होती हैं?
A) 11
B) 12
C) 13
D) 14
उत्तर: C) 13
‘हरिगीतिका छंद’ में प्रत्येक चरण की कुल कितनी मात्राएँ होती हैं?
A) 16
B) 24
C) 28
D) 32
उत्तर: C) 28
‘दोहा छंद’ का एक मुख्य लक्षण क्या है?
A) प्रत्येक चरण में 11 मात्राएँ होती हैं
B) प्रत्येक चरण में 13 मात्राएँ होती हैं
C) प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं
D) प्रत्येक चरण में 18 मात्राएँ होती हैं
उत्तर: B) प्रत्येक चरण में 13 मात्राएँ होती हैं
‘मालिनी छंद’ में प्रत्येक चरण की कितनी वर्ण मात्राएँ होती हैं?
A) 12
B) 15
C) 18
D) 20
उत्तर: B) 15
‘अतुकांत छंद’ में क्या होता है?
A) पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ समान होती हैं
B) पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ असमान होती हैं
C) पंक्तियों के अंत में यति होती है
D) पंक्तियों में केवल लघु वर्ण होते हैं
उत्तर: B) पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ असमान होती हैं
‘तुकांत छंद’ में क्या होता है?
A) पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ असमान होती हैं
B) पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ समान होती हैं
C) पंक्तियों के बीच यति होती है
D) पंक्तियों में लघु वर्ण होते हैं
उत्तर: B) पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ समान होती हैं
‘यति’ का उपयोग क्यों किया जाता है?
A) छंद में मात्रा की गिनती के लिए
B) छंद में विराम और लय बनाए रखने के लिए
C) चरणों की संख्या निर्धारित करने के लिए
D) छंद की तुकांतता निर्धारित करने के लिए
उत्तर: B) छंद में विराम और लय बनाए रखने के लिए
‘कुंडलियाँ छंद’ में कितने चरण होते हैं?
A) 2
B) 4
C) 6
D) 8
उत्तर: B) 4
‘वर्णिक छंद’ का एक प्रमुख लक्षण क्या है?
A) मात्राओं की संख्या निश्चित नहीं होती
B) मात्राओं की संख्या तय होती है
C) चरणों की संख्या तय नहीं होती
D) छंद में तुकांतता होती है
उत्तर: A) मात्राओं की संख्या निश्चित नहीं होती
‘उभय छंद’ में क्या होता है?
A) मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकार की व्यवस्था होती है
B) केवल वर्णिक व्यवस्था होती है
C) केवल मात्रिक व्यवस्था होती है
D) तुकांत और अतुकांत व्यवस्था होती है
उत्तर: A) मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकार की व्यवस्था होती है
‘मुक्त या स्वच्छन्द छंद’ का क्या लक्षण है?
A) निश्चित मात्रा और गण
B) लय और ध्वनि का कोई विशेष नियम नहीं
C) यति का पालन होना चाहिए
D) चरणों की संख्या तय होती है
उत्तर: B) लय और ध्वनि का कोई विशेष नियम नहीं
‘हरिगीतिका छंद’ में कितने चरण होते हैं?
A) 2
B) 4
C) 6
D) 8
उत्तर: B) 4
‘बरवै छंद’ का प्रमुख लक्षण क्या है?
A) चार चरण होते हैं
B) प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं
C) प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं
D) केवल लघु और गुरु वर्ण होते हैं
उत्तर: A) चार चरण होते हैं
‘दिगपाल छंद’ का क्या लक्षण है?
A) केवल मात्रिक व्यवस्था होती है
B) वर्णिक और तुकांत व्यवस्था होती है
C) हर चरण में 12 वर्ण होते हैं
D) केवल वर्णिक छंद का पालन होता है
उत्तर: C) हर चरण में 12 वर्ण होते हैं
‘छप्पय छंद’ में कितने चरण होते हैं?
A) 2
B) 4
C) 6
D) 8
उत्तर: C) 6
Worksheet
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FAQs
छंद क्या है?
छंद काव्य के उन वर्गीकरणों को कहा जाता है जिनमें विशेष मात्रा, लय, और ध्वनि की व्यवस्था होती है। यह कविता की संरचना और ताल को निर्धारित करता है।
छंद के कितने प्रमुख प्रकार होते हैं?
छंद मुख्यतः 4 प्रकार के होते हैं: मात्रिक छंद, वर्णिक छंद, वर्णिक वृत छंद, और उभय छंद।
मात्रिक छंद क्या है?
मात्रिक छंद में केवल मात्राओं की संख्या निर्धारित होती है, लेकिन लघु और गुरु वर्णों का क्रम निर्धारित नहीं होता।
वर्णिक छंद का लक्षण क्या है?
वर्णिक छंद में वर्णों की संख्या और उनकी व्यवस्था निर्धारित होती है। इसमें मात्रा का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता।
तुकांत छंद क्या होता है?
तुकांत छंद वह होता है जिसमें पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ समान होती हैं। यह छंद कविता को एक लय और सौंदर्य प्रदान करता है।
अतुकांत छंद क्या होता है?
अतुकांत छंद में पंक्तियों के अंत में ध्वनियाँ असमान होती हैं। इसमें तुक की व्यवस्था नहीं होती।
यति क्या है और इसका उपयोग क्यों किया जाता है?
यति छंद में बीच-बीच में विराम लेने की स्थिति को कहा जाता है। इसका उपयोग लय और rhythm बनाए रखने के लिए किया जाता है।
गण क्या होता है?
गण तीन वर्णों के समूह होते हैं जिनकी विभिन्न विशेषताएँ होती हैं, जैसे मगण, नगण, भगण, आदि। ये छंद की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मुक्त या स्वच्छन्द छंद क्या है?
मुक्त या स्वच्छन्द छंद में कोई विशेष मात्रा, लय, या ध्वनि का नियम नहीं होता। इसमें कवि को पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
छंद में ‘यति’ की भूमिका क्या होती है?
‘यति’ छंद में विराम चिन्ह (जैसे , (,) , (1) , (11) , (?) , (!)) का प्रयोग करके लय और रुकावट बनाए रखने में मदद करता है। यह छंद को स्वाभाविक लय प्रदान करता है।