संत कबीर दास 15वीं सदी के प्रमुख हिंदी कवि और विचारक थे, जिन्होंने भक्तिकाल के निर्गुण शाखा “ज्ञानमर्गी उपशाखा” से संबंधित थे। उनकी रचनाओं और विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को गहरे प्रभावित किया। वे समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांडों और अंधविश्वास की आलोचना करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं के कुछ अंश सिक्खों के “आदि ग्रंथ” में भी शामिल हैं।
नाम | संत कबीर दास |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | नीरू |
माता का नाम | नीमा |
पत्नी का नाम | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
शिक्षा | निरक्षर |
मुख्य रचनाएं | साखी, सबद, रमैनी |
काल | भक्तिकाल |
शाखा | ज्ञानमार्गी शाखा |
भाषा | अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा |
कबीर दास का जीवन परिचय – Kabir Das Ka Jivan Parichay
कबीर दास का जन्म कब हुआ, यह ठीक से नहीं पता, लेकिन माना जाता है कि उनका जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (अब वाराणसी) में हुआ था। कबीर दास के बारे में कई कहानियाँ हैं। एक कहानी के अनुसार, वे एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसे उन्होंने जन्म के बाद नदी में बहा दिया था।
नीरू और नीमा नामक एक जुलाहा दंपति ने कबीर को नदी के किनारे पाया और उनका पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु संत स्वामी रामानंद थे। कबीर का विवाह लोई नामक महिला से हुआ, और उनके दो बच्चे हुए, जिनके नाम कमाल और कमाली थे। आम तौर पर माना जाता है कि कबीर दास का निधन 1575 के आसपास मगहर में हुआ था। कबीर दास का जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
कबीरदास का जन्म और प्रारम्भिक जीवन
भारत के महान संत कबीर का जन्म 1398 ईस्वी में हुआ था। वे एक जुलाहा परिवार में पैदा हुए थे, जहाँ उनके पिता का नाम नीरू और माता का नाम नीमा था। कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसने लोक लाज के डर से उन्हें जन्म देने के बाद त्याग दिया था। नीरू और नीमा ने कबीर को नदी के किनारे पाया और उनका पालन-पोषण किया।
कबीर के गुरु प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद थे। लोक कथाओं के अनुसार, कबीर विवाहित थे। उनकी पत्नी का नाम लोई था और उनके दो बच्चे थे: एक पुत्र कमाल और एक पुत्री कमाली।
कबीर दास की शिक्षा
कबीर दास ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली और उन्होंने कभी कागज़ या कलम का इस्तेमाल नहीं किया। वे अपनी जिंदगी के लिए जुलाहे का काम करते थे। कबीर दास वाराणसी के प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद के शिष्य बनना चाहते थे ताकि वे अपनी आध्यात्मिक खोज पूरी कर सकें। स्वामी रामानंद उस समय के प्रसिद्ध ज्ञानी थे, लेकिन उन्होंने कबीर को शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया। हालांकि, कबीर ने मन ही मन उन्हें अपना गुरु मान लिया था। कबीर दास ने सोचा कि वे अपने गुरु से गुरु मंत्र लेंगे, लेकिन कोई तरीका नहीं सूझ रहा था।
एक दिन कबीर दास ने सोचा कि वे सुबह जल्दी उठकर स्वामी रामानंद को काशी घाट पर स्नान के लिए जाते हुए देखेंगे। वे जानना चाहते थे कि उनके गुरु का पहला शब्द क्या होगा, ताकि वही गुरु मंत्र मान सकें। एक दिन जब स्वामी रामानंद ने कबीर पर पैर रखे, तो उन्होंने “राम” नाम लिया। कबीर ने इसे अपना गुरु मंत्र मान लिया। कुछ लोगों का मानना है कि कबीर दास के कोई गुरु नहीं थे और उन्हें जो ज्ञान मिला, वह उनके खुद के प्रयास से था। कबीर ने कोई किताब नहीं लिखी; उन्होंने जो कुछ भी कहा, वह उनके शिष्यों ने लिख लिया। कबीर दास के जीवन और ज्ञान के बारे में पढ़े-लिखे लोग आज भी शोध कर रहे हैं, और यह जानकर आश्चर्य होता है कि उन्होंने कभी कागज़ या कलम का इस्तेमाल नहीं किया।
कबीर दास की मृत्यु
15वीं शताब्दी के सूफी कवि कबीर दास ने अपनी मृत्यु के लिए मगहर का स्थान चुना। मगहर लखनऊ से लगभग 240 किमी दूर स्थित है। उस समय यह मान्यता थी कि जो व्यक्ति मगहर में मरता है, उसे स्वर्ग नहीं मिलता और अगले जन्म में गधे के रूप में जन्म लेना पड़ता है। इस मिथक को तोड़ने के लिए कबीर दास ने मगहर को अपनी मृत्यु के लिए चुना। कबीर दास ने माघ शुक्ल एकादशी को, जो विक्रम संवत 1575 के अनुसार 1518 में जनवरी के महीने में आता है, मगहर में अंतिम सांस ली। उनके निधन के बाद उनके हिंदू और मुस्लिम अनुयायी उनके अंतिम संस्कार के लिए झगड़े। जब वे शव को खोलते हैं, तो उन्होंने केवल कुछ फूल पाए, क्योंकि कबीर ने अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार पूरा किया था।
काशी में मरने की धारणा के खिलाफ कबीर दास ने अपनी मृत्यु मगहर में की। एक प्रसिद्ध कहावत भी है: “जो कबीरा काशी मुए तो रमे कौन निहोरा”। इसका मतलब है कि अगर काशी में मरना ही स्वर्ग का आसान रास्ता है, तो भगवान की पूजा करने की क्या आवश्यकता है। मगहर में कबीर दास की मजार और समाधि स्थित है। समाधि से कुछ मीटर की दूरी पर एक गुफा है, जो उनके ध्यान स्थान का संकेत देती है। कबीर शोध संस्थान नामक एक ट्रस्ट कबीर दास के कार्यों पर शोध को बढ़ावा देने के लिए काम करता है, और यहां शैक्षणिक संस्थान भी हैं जहां कबीर दास की शिक्षाओं को पढ़ाया जाता है।
कबीर दास जयंती
महान संत कबीर दास का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन कबीर पंथ के अनुयायी कबीर दास के दोहे पढ़ते हैं और उनकी शिक्षा से प्रेरणा लेते हैं। लोग इस अवसर पर कथा सत्संग और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
कबीर दास जयंती के दिन वाराणसी स्थित कबीर चौथा मठ में विशेष धार्मिक उपदेशों का आयोजन किया जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन भव्य जश्न मनाया जाता है, जबकि अन्य जगहों पर धार्मिक जुलूस और शोभायात्रा भी निकाली जाती है। कबीर दास की जयंती भारत के साथ-साथ विदेशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। 2024 में संत कबीर दास जी की जयंती 22 जून, शनिवार को होगी।
कबीरदास के गुरु
महान संत कबीर ने काशी के प्रसिद्ध महात्मा स्वामी रामानंद को अपना गुरु माना। कहा जाता है कि रामानंद जी ने कबीर को उनकी जाति के कारण अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था। लेकिन कबीर दास ने हार नहीं मानी। एक दिन उन्होंने गंगा तट पर सीढ़ियों पर लेट गए, जहाँ रामानंद जी प्रतिदिन सुबह जल्दी स्नान के लिए आते थे।
अंधेरे में स्वामी रामानंद का पैर कबीर पर पड़ा और उन्होंने “राम-राम” का उच्चारण किया। कबीर ने इसे अपना गुरु मंत्र मान लिया और स्वामी रामानंद को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर का एक अन्य गुरु भी था, जिसे प्रसिद्ध सूफी फकीर शेख तकी के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन स्वामी रामानंद को कबीर के प्रमुख गुरु के रूप में मान्यता प्राप्त है।
कबीरदास जी की भाषा
कबीर दास की रचनाएँ मुख्यतः दोहों और गीतों का संग्रह हैं। उनकी लेखन शैली और भाषा बहुत सरल और प्रभावी है। कबीर ने अपने दोहों में गहरी भावनाएँ और महत्वपूर्ण शिक्षाएँ सजीवता से प्रस्तुत की हैं। उनके दोहे और गीत अपने सरलता और स्पष्टता के लिए प्रसिद्ध हैं, और उन्होंने अपने दिल की गहराई से इन्हें लिखा है।
कबीर दास की प्रमुख रचनाओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- रेख़्ता (Rekhta) – कबीर के काव्य का एक महत्वपूर्ण संग्रह।
- कबीर बीजक (Kabir Beejak) – कबीर के भक्ति गीतों का संकलन।
- सुक्निधान (Sukhnidhan) – कबीर की प्रमुख काव्य रचनाओं का संग्रह।
- मंगल (Mangal) – धार्मिक और भक्ति गीतों का संग्रह।
- वसंत (Vasant) – वसंत ऋतु पर आधारित काव्य रचनाएँ।
- सबदास (Sabdas) – कबीर के प्रमुख भक्ति गीत।
- सखियाँ (Sakhis) – कबीर के भक्ति और उपदेशात्मक गीत।
- पवित्र आगम (Pavitra Agam) – कबीर के धर्म और आध्यात्मिक विचारों का संकलन।
कबीर दास की रचनाएँ अपने सहज और स्वाभाविक शैली के कारण अत्यंत प्रभावशाली हैं। उनके दोहे और गीत जीवन के गहरे सत्य और भावनाओं को सरल और अर्थपूर्ण तरीके से व्यक्त करते हैं। कबीर दास की शिक्षाएँ समय और सीमाओं से परे हैं और आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
कबीर दास की रचनाएं
कबीर दास ने अपनी रचनाओं में सरल और प्रभावी भाषा का प्रयोग किया, और धर्म, संस्कृति, समाज, और जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय प्रस्तुत की। उनकी रचनाओं में आत्मा और परमात्मा के संबंध की भी स्पष्ट व्याख्या मिलती है। कबीर दास की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
- साखी (Sakhi) – जीवन, धर्म, और समाज पर कबीर की शिक्षाओं का संग्रह।
- सबद (Sabad) – भक्ति और आध्यात्मिक गीतों का संकलन।
- रमैनी (Ramaini) – कबीर के भक्ति काव्य का संग्रह।
- कबीर बीजक (Kabir Beejak) – कबीर के महत्वपूर्ण भक्ति गीतों का संग्रह।
- सुखनिधन (Sukhnidhan) – कबीर के प्रमुख काव्य रचनाएँ।
- रक्त (Rakt) – कबीर के आध्यात्मिक विचारों का संग्रह।
- वसंत (Vasant) – वसंत ऋतु पर आधारित कबीर की काव्य रचनाएँ।
- होली अगम (Holi Agam) – कबीर के धार्मिक और भक्ति गीत।
इन रचनाओं में कबीर बीजक सबसे प्रमुख है। कबीर दास की रचनाओं में एक खास तरह की गहराई और प्रभावशीलता है, जिसे अन्य संतों की रचनाओं में नहीं पाया जाता। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को “वाणी का डिक्टेटर” कहा, और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा, जो उनकी बहुपरकारी और विविध भाषा शैली को दर्शाता है।
कबीर दास की साहित्यक रचनाएं
कबीर दास ने औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी और उन्होंने अपनी रचनाओं को खुद नहीं लिखा। उन्होंने स्वयं अपनी वाणी से कहा था:
“मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ।”
इससे पता चलता है कि कबीर ने कभी कागज या कलम का उपयोग नहीं किया। फिर भी, उनके द्वारा कहे गए अमूल्य वचनों का संग्रह कई प्रमुख ग्रंथों में किया गया है। यह माना जाता है कि उनके शिष्यों ने उनकी वाणी का संग्रह ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में किया। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कबीर के साहित्यिक प्रयासों के बारे में कहा:
“कविता करना कबीर का लक्ष्य नहीं था, कविता तो उन्हें संत-मेंत में मिली वस्तु थी, उनका लक्ष्य लोकहित था।”
कबीर दास की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
रचना | अर्थ | प्रयुक्त छंद | भाषा |
साखी | साक्षी | दोहा | राजस्थानी, पंजाबी, मिली खड़ी बोली |
सबद | शब्द | गेय पद | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
रमैनी | रामायण | चौपाई और दोहा | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
कबीर दास: एक हिंदू या एक मुसलमान
कबीर दास की मृत्यु के बाद, हिंदू और मुसलमान दोनों ने उनके शव को अपने तरीके से अंतिम संस्कार करने का दावा किया। हिंदुओं ने कहा कि वे कबीर दास को जलाना चाहते हैं, जबकि मुसलमानों ने कहा कि वे उन्हें दफनाना चाहते हैं। जब शव की चादर हटाई गई, तो वहां केवल कुछ फूल मिले। दोनों पक्षों ने फूलों को बांट लिया और अपने-अपने तरीके से अंतिम संस्कार किया। इस घटना के बारे में कहा जाता है कि कबीर दास की आत्मा उनके पास आई और कहा:
“मैं न तो हिंदू था और न ही मुसलमान। मैं दोनों था, मैं कुछ भी नहीं था, मैं ही सब कुछ था। मैं दोनों में भगवान को देखता हूं। जो मोह से मुक्त है, उसके लिए हिंदू और मुसलमान एक ही हैं। कफन हटाओ और चमत्कार देखो!”
आज, काशी में कबीर चौरा पर एक मंदिर है जो पूरे भारत और विदेशों में भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान बन गया है। वहीं, मुसलमानों ने कबीर दास की कब्र के ऊपर एक मस्जिद बनाई है, जो मुसलमानों के लिए भी एक तीर्थ स्थान है।
कबीर दास के ईश्वर के प्रति विचार
संत कबीर का मानना था कि ईश्वर केवल एक है। जैसे पूरे विश्व में एक ही हवा और पानी होते हैं, वैसे ही पूरे संसार में एक ही परम ज्योति व्याप्त है। सभी लोग एक ही मूल से, यानी ब्रह्मा से बने हैं।
कबीर दास ने ईश्वर प्राप्ति के पारंपरिक विश्वासों को नकारा। उनके अनुसार, ईश्वर न तो मंदिर में है, न मस्जिद में; न ही काबा या कैलाश जैसे तीर्थ स्थलों में। ईश्वर न तो योग साधना से मिलता है, और न वैराग्य से। ये सभी बाहरी दिखावे और ढोंग हैं। इनसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती।
कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे
यहां संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे दिए गए हैं:
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई।”
“ख़ुदा की मूरत समझे, मूरत हो जाए फिर।
खुदा की बस्ती में जो, खुदा को पाए फिर।”
“साधू साधन सुभाव है, सच्चा साधू नाम।
जो बुराई छोड़ दे, वही साधू है स्वाम।”
“माला फेरत जाऊँ, फिरा ना मन का फेर।
करता खुदा को, बुरा कहता सबका शेर।”
“जिन खोजा तिन पाइयां, गहरी बयां परताल।
मैं बूरा बुरा बुरा कह, बुरा नाहीं कोई।”
“तुलसी का बंदन रिया, सच्चा जो तप को चीर।
जो निर्गुण को साकार समझे, बुरा उसका वीर।”
“मात-पिता से ऊँचा, गुरु को मानो सभी।
गुरु बिना ज्ञान नहीं, अज्ञान का है घेर।”
“कबहू न मारे प्रेम के, और न पाप करे।
जो पिया प्यार में भरे, वही सच्चा प्रेम करे।”
“जैसे करोगे तैसा भोगोगे, क्या होगा जो भाग्य के फेर।
जो जैसा करे वैसा मिले, यही है जीवन का सच्चा रीत।”
“तुलसी पत्थर की पंथ सजा, तिन तिन एक जैसा है।
सच्चे संत की आँखों में, सच्चा ही सच्चा है।”
“माया महा ठगनी, तू चित्त की बानी।
बुढ़ापे की लाठी, चढ़े माया की सानी।”
“मन की माया, मन का पाप।
जिसको जिए नहीं, सबको जिए बाप।”
“साधू-साधू कहना मन का है, तीरथ करे सफाई में।
अपने को समझे नहीं, खुदा को जाने और।”
“संसार की बढ़ती माया, सबके मन को लगाती।
फिर सच्चा स्नेह क्यूं, सच्चा प्यासा पाती।”
“पथिक के मिलते न द्वार, नाम न सुमिरन होती बार।
यह बुढ़ापे के अंत में, चौरासी में हो न विचार।”
“साधू-संत का अनमोल आशीर्वाद, बुराई से रखे बचा।
जो सच्चा आशीर्वाद हो, वही सच्चा गुरु का।”
“जिसको सच्चा ज्ञान मिला, वही पाता है सच्चा प्रेम।
जो नहीं समझे सच्चाई को, वही अनजान है सच्चा जेम।”
“ज्योंक भरी बर्तन की, ज्योंक खुदा की बातें।
सच्चा वह भरा बर्तन, पाता सच्चा शैतान।”
“माया महा ठगनी, तुझको ठग ले जाए।
दुनिया के लब चुराए, सबको पीला जाए।”
“कबीर बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई।”
“मरे चक चकर तीतर, तीरत लगावे लगान।
बुरा जो सब जानि, जो सब करें कारण।”
“कभी न मारे प्रेम के, जो बुरा करे पाप।
जो सच्चा प्रेम में रहे, वही सच्चा स्नेह का आप।”
“फूल माला वेश की ठगनी, सच्चा प्रेम नहीं मिले।
जो प्रेम से सजता है, वही प्रेम का सच्चा फूल।”
“साधू-संत की बस्ती में, सच्चा प्रेम नजर आता।
जो भीतर भाव न मिले, सच्चा प्रेम तु न पाएगा।”
“पुजा अर्चना की सारी माया, सबका सच्चा फेरा।
जो सच्चा प्रेम करता है, वही सच्चा प्रेम का सेरा।”
“ज्योंक भरी बर्तन की बाते, ज्योंक खुदा के कहना।
जो नहीं समझे सच्चाई को, वही अनजान है समझना।”
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई।”
“माया महा ठगनी, सबको धोखा दे जाती।
सच्चा प्रेम वही है, जो माया से बचाती।”
“कभी न मारे प्रेम के, सब कर बुरा काम।
जो प्रेम में सच्चा है, वही सच्चा प्रेम का राम।”
“साधू-संत की वाणी में, सच्चा प्रेम मिले सबको।
जो सच्चा प्रेम करता है, वही सच्चा प्रेम का मृदुल।”
कबीरदास के दोहे अर्थ सहित
यहाँ कुछ प्रमुख कबीर दास के दोहे और उनके अर्थ दिए गए हैं:
“माला फेरत जाऊँ, फिरा ना मन का फेर।
करता खुदा को, बुरा कहता सबका शेर।”
अर्थ: मैं माला घुमाता हूँ, लेकिन मन का फेर नहीं बदलता। हर कोई खुदा की पूजा करता है, लेकिन खुदा की सच्चाई को न जानने वाले सब बुरा कहते हैं।
“साधू-साधन सुभाव है, सच्चा साधू नाम।
जो बुराई छोड़ दे, वही साधू है स्वाम।”
अर्थ: सच्चे साधू का स्वभाव अच्छा होता है। वह साधू सच्चा है, जो बुराई को छोड़ देता है।
“माया महा ठगनी, तुझको ठग ले जाए।
दुनिया के लब चुराए, सबको पीला जाए।”
अर्थ: माया एक बड़ी ठगनी है, जो लोगों को ठग ले जाती है। यह दुनिया की चीजों को चुराती है और सबको धोखा देती है।
“साधू-संत की बस्ती में, सच्चा प्रेम नजर आता।
जो भीतर भाव न मिले, सच्चा प्रेम तु न पाएगा।”
अर्थ: साधू-संत की बस्ती में सच्चा प्रेम देखने को मिलता है। अगर आपके अंदर सच्चे भाव नहीं हैं, तो आप सच्चा प्रेम नहीं पा सकते।
“जिन खोजा तिन पाइयां, गहरी बयां परताल।
मैं बूरा बुरा बुरा कह, बुरा नाहीं कोई।”
अर्थ: जिन लोगों ने गहराई से खोजा, उन्हें सच्चा ज्ञान मिला। मैं बुरा कहता हूँ, लेकिन वास्तव में कोई बुरा नहीं है।
“कबीर बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई।”
अर्थ: कबीर ने बुरा देखने की कोशिश की, लेकिन कहीं भी बुरा नहीं मिला। जब उन्होंने अपने दिल को खोजा, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
“माया महा ठगनी, तुझको ठग ले जाए।
दुनिया के लब चुराए, सबको पीला जाए।”
अर्थ: माया एक बड़ी ठगनी है, जो सभी को ठग ले जाती है। यह दुनिया के लाभ को चुराती है और सबको धोखा देती है।
“संत मिलन सुक्खा है, दुनिया का सारा झूठ।
जो साधू-संत के संग मिले, पाया सच्चा सुख।”
अर्थ: संतों के साथ मिलकर सच्चा सुख प्राप्त होता है, जबकि दुनिया के सारे झूठ छूट जाते हैं।
“साधू-संत का अनमोल आशीर्वाद, बुराई से रखे बचा।
जो सच्चा आशीर्वाद हो, वही सच्चा गुरु का।”
अर्थ: साधू-संत का आशीर्वाद अनमोल है, जो बुराई से बचाता है। सच्चा आशीर्वाद वही है, जो सच्चे गुरु का होता है।
“माया महा ठगनी, सबको धोखा दे जाती।
सच्चा प्रेम वही है, जो माया से बचाती।”
अर्थ: माया एक बड़ी ठगनी है, जो सभी को धोखा देती है। सच्चा प्रेम वही है, जो माया से बचाता है।
“फूल माला वेश की ठगनी, सच्चा प्रेम नहीं मिले।
जो प्रेम से सजता है, वही प्रेम का सच्चा फूल।”
अर्थ: माला और फूल वेश का दिखावा हैं, सच्चा प्रेम नहीं मिलता। जो प्रेम सच्चे दिल से होता है, वही सच्चा प्रेम है।
“ज्योंक भरी बर्तन की बाते, ज्योंक खुदा के कहना।
जो नहीं समझे सच्चाई को, वही अनजान है समझना।”
अर्थ: जैसे भरी बर्तन की बात होती है, वैसे ही खुदा की बातें हैं। जो सच्चाई को नहीं समझते, वे अनजान हैं।
“साधू-संत की बस्ती में, सच्चा प्रेम नजर आता।
जो भीतर भाव न मिले, सच्चा प्रेम तु न पाएगा।”
अर्थ: साधू-संत की बस्ती में सच्चा प्रेम देखने को मिलता है। अगर आपके भीतर सच्चे भाव नहीं हैं, तो आप सच्चा प्रेम नहीं पा सकते।
“सुख न पाए जो मन का, संत नहीं होता सच्चा।
जो भीतर प्रेम न लाए, वह दुखी जीवन बिताए।”
अर्थ: जो मन का सुख नहीं प्राप्त करता, वह सच्चा संत नहीं होता। जो भीतर प्रेम नहीं लाता, उसका जीवन दुखी होता है।
“मन की माया, मन का पाप।
जिसको जिए नहीं, सबको जिए बाप।”
अर्थ: मन की माया और पाप हैं, जो किसी के लिए सही नहीं हैं। जो जीवन जीने में असमर्थ हैं, वही दूसरों को परेशान करते हैं।
“संसार की बढ़ती माया, सबके मन को लगाती।
फिर सच्चा स्नेह क्यूं, सच्चा प्यासा पाती।”
अर्थ: संसार की माया बढ़ती जाती है और सभी के मन को लगाती है। सच्चा स्नेह और प्यास केवल उसी को मिलती है, जो सच्चे दिल से स्नेह करता है।
“साधू-संत की वाणी में, सच्चा प्रेम मिले सबको।
जो सच्चा प्रेम करता है, वही सच्चा प्रेम का मृदुल।”
अर्थ: साधू-संत की वाणी में सच्चा प्रेम मिलता है। जो सच्चे प्रेम से जुड़ा होता है, वही सच्चा प्रेम का आनंद प्राप्त करता है।
“जो ढूंढे तिन पाए, गहरी बयां परताल।
मैं बुरा बुरा बुरा कह, बुरा नहीं कोई।”
अर्थ: जो व्यक्ति गहराई से खोजता है, उसे सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। मैं जो भी बुरा कहूं, वास्तव में कोई बुरा नहीं है।
कबीरदास के भजन
भजन 1
तिनका कबीरा, उड़ा चला,
घर छोड़कर चला गया।
तिनका कबीरा, उड़ा चला।
जैसे तिनका हवा में उड़ता,
कभी न ठहरता, वही भाया।
तिनका कबीरा, उड़ा चला।
कबीर की तिनका हर घड़ी,
फूल न खिलाया, सब तेरा।
तिनका कबीरा, उड़ा चला।
भजन 2
पानी गगरी में भर लिया,
सपने दिखा कर चला गया।
पानी गगरी में भर लिया।
गगरी का पानी खाली कर,
गागर में कुछ न रखा।
पानी गगरी में भर लिया।
कबीर कहे, गागर के जल,
न बहे न बहे, सब कुछ खो गया।
पानी गगरी में भर लिया।
भजन 3
बजरे में एक बीज बोया,
मिट्टी में डालकर चला गया।
बजरे में एक बीज बोया।
फूल न फला, फल भी न आया,
बीज का काम न आया।
बजरे में एक बीज बोया।
कबीर कहते, बीज का असर,
जैसा वो बोया, वैसा ही पाया।
बजरे में एक बीज बोया।
भजन 4
धूप का चश्मा पहन लिया,
छांव में छुप कर चला गया।
धूप का चश्मा पहन लिया।
छांव में खुद को दिखाया,
सूरज से दूर भागा।
धूप का चश्मा पहन लिया।
कबीर कहते, सूरज से छिपकर,
कभी छांव में न सुकून पाया।
धूप का चश्मा पहन लिया।
भजन 5
पंखा चलाकर सो गया,
पसीना बहा कर चला गया।
पंखा चलाकर सो गया।
पसीने की बूंदें गिरीं,
अधर में ही गुम हो गईं।
पंखा चलाकर सो गया।
कबीर कहते, पंखा चला तो,
पसीने की परवाह न की।
पंखा चलाकर सो गया।
कबीरदास के बारे में रोचक जानकारियाँ
कबीर दास के बारे में कुछ रोचक जानकारियाँ निम्नलिखित हैं:
कबीर मठ
कबीर मठ वाराणसी में स्थित है, खासकर कबीर चौरा और लहरतारा में। यहाँ पर लोग संत कबीर के दोहे गाते हैं और उनकी शिक्षाओं पर ध्यान देते हैं। नीरू टीला वह जगह है जहाँ कबीर के माता-पिता, नीरू और नीमा, रहते थे। अब, यह जगह कबीर के कामों का अध्ययन करने वाले छात्रों और विद्वानों के लिए एक आवास बन गई है। यहाँ लोग कबीर की सिखाई गई बातें समझने और उनकी शिक्षा को जानने के लिए आते हैं।
दर्शन
कबीर दास भारतीय संत थे जिन्होंने हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों को एक सामान्य मार्ग प्रदान किया, जिसे दोनों धर्मों के लोग मान सकते हैं। उनका दर्शन इस प्रकार था:
- ईश्वर का एकता: कबीर के अनुसार, ईश्वर एक है और सभी धार्मिक कर्मकांड और बाहरी दिखावे सिर्फ धोखा हैं। सच्चा ईश्वर कहीं भी नहीं है, न मंदिर में और न मस्जिद में।
- आध्यात्मिक सिद्धांत: कबीर का मानना था कि प्रत्येक जीवन में दो महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सिद्धांत होते हैं – जीवात्मा (व्यक्तिगत आत्मा) और परमात्मा (सर्वव्यापी ईश्वर)। मोक्ष (आध्यात्मिक मुक्ति) इन दोनों को एकजुट करने की प्रक्रिया है।
- साधारण भाषा में दर्शन: कबीर की भाषा और उनके दर्शन दोनों ही सरल थे। उनकी कविताएँ और शिक्षाएँ हिंदी की सरल बोली में थीं, जिससे सामान्य लोग भी उन्हें आसानी से समझ सकें।
- मूर्ति पूजा का विरोध: कबीर ने हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध किया और भक्ति और सूफी विचारों को स्वीकार किया। उनके लिए भक्ति ही सच्चा मार्ग था।
उनकी कविता
कबीर दास की कविताएँ सरल और संक्षिप्त शैली में थीं, जो एक सच्चे गुरु की प्रशंसा के अनुरूप थीं। उनके कविताएँ निम्नलिखित विशेषताओं को दर्शाती हैं:
- सरल और संक्षिप्त शैली: कबीर ने अपनी कविताओं को सरल और सीधी भाषा में लिखा। उनकी कविताओं का उद्देश्य सीधे दिल को छूना था, न कि जटिलता में खो जाना।
- भाषाई विविधता: कबीर ने अपनी कविताओं में हिंदी की विभिन्न बोलियों का उपयोग किया, जैसे कि अवधी, ब्रज, और भोजपुरी। यह उनकी कविताओं को स्थानीय लोगों के लिए और भी समझने योग्य बनाता है।
- अनपढ़ होने के बावजूद: कबीर अनपढ़ थे, फिर भी उन्होंने अपनी गहरी समझ और भावनाओं को शब्दों में ढाला। उनकी कविताएँ उनके अनुभव और ज्ञान को प्रकट करती हैं।
- अनदेखा अपमान: कई लोगों ने कबीर का अपमान किया और उनकी कविताओं की आलोचना की, लेकिन कबीर ने कभी दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने अपनी राह पर बने रहना और अपनी सच्चाई को प्रकट करना जारी रखा।
विरासत
संत कबीर की कविताएँ और गीत विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध हैं, जो उनकी व्यापक और अमिट छाप को दर्शाती हैं। उनकी विरासत निम्नलिखित तरीकों से जारी रहती है:
- काव्य की विविधता: कबीर की कविताएँ, गीत, और श्लोक विभिन्न रूपों में उपलब्ध हैं, जैसे कि दोहे, श्लोक, और सखी। ये काव्य रूप उनकी शिक्षाओं और विचारों को सरल और प्रभावी तरीके से व्यक्त करते हैं।
- सखी का महत्व: “सखी” शब्द का मतलब है “याद करना” और यह उच्चतम सत्य को याद दिलाने का एक तरीका है। कबीर की सखी उनके शिक्षाओं और सच्चाई को स्थायी रूप से स्मरण कराने का माध्यम हैं।
- आध्यात्मिक जागृति: कबीर के कथनों और कविताओं को याद करना, उनके प्रति ध्यान लगाना और उन पर विचार करना उनके अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक जागृति का एक मार्ग है। इन काव्य रचनाओं के माध्यम से लोग आत्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।
- अनुयायी और काव्य प्रतिक्रिया: कबीर और उनके अनुयायी अपनी कविताओं और विचारों के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं। उनकी काव्य प्रतिक्रिया और कथन आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने में मदद करते हैं।
समाधि मंदिर
समाधि मंदिर उस विशेष स्थान पर बनाया गया है जहां संत कबीर अपनी साधना किया करते थे। यह जगह संतों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां वे शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। समाधि मंदिर की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- साधना से समाधि की यात्रा: समाधि मंदिर वह स्थल है जहां संत कबीर ने अपनी साधना की और जहां उनकी समाधि स्थित है। यह स्थान साधना से समाधि तक की यात्रा का प्रतीक है और संतों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
- शांति और ऊर्जा का केंद्र: समाधि मंदिर को शांति और सकारात्मक ऊर्जा के लिए विश्वभर में जाना जाता है। यहाँ की शांतिपूर्ण वातावरण और दिव्य ऊर्जा लोगों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है।
- पारंपरिक विवाद: कबीर की मृत्यु के बाद, उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए लेकर हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों के बीच विवाद हुआ था। जब समाधि कक्ष का दरवाजा खोला गया, तो वहाँ केवल दो फूल मिले, जिन्हें हिंदू और मुस्लिम शिष्यों के बीच वितरित किया गया था।
- निर्माण की सामग्री: समाधि मंदिर का निर्माण मिर्जापुर की मजबूत ईंटों से किया गया है, जो इसकी स्थिरता और मजबूती को दर्शाता है।
कबीर चबूतरा में बीजक मंदिर
कबीर चबूतरा एक महत्वपूर्ण स्थल है जो संत कबीर दास के कार्य और साधना का केंद्र था। यहाँ पर कबीर दास ने अपने शिष्यों को भक्ति, ज्ञान, कर्म, और मानवता के मूलभूत सिद्धांतों का ज्ञान दिया। इस स्थल के विशेष विवरण निम्नलिखित हैं:
- कार्यस्थल और साधनास्थल: कबीर चबूतरा वह स्थान है जहां कबीर दास ने अपने शिष्यों को धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा दी। यह जगह उनके कार्यस्थल और साधनास्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
- नामकरण का कारण: इस स्थान को कबीर चबूतरा नाम से जाना जाता है। “बीजक” कबीर दास की एक प्रमुख कृति है, जिसे उन्होंने अपनी शिक्षाओं और विचारों को संजोने के लिए लिखा था। इसलिए, इस स्थल को बीजक मंदिर भी कहा जाता है, जो कबीर दास की महान कृति के सम्मान में है।
- धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व: कबीर चबूतरा का धार्मिक महत्व उनके उपदेशों और शिक्षाओं के प्रसार के कारण है। यहाँ पर आने वाले भक्त और अनुयायी कबीर दास की शिक्षाओं से प्रेरित होते हैं और उनके जीवन के मार्गदर्शन को समझते हैं।
आशा है कि आपको यह ब्लॉग “Kabir Das Ka Jivan Parichay” पसंद आया होगा। यदि आप कोट्स पर और ब्लॉग्स पढ़ना चाहते हैं, तो iaspaper के साथ जुड़े रहें।
FAQ
कबीर दास कौन थे?
कबीर दास एक महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे जिन्होंने 15वीं सदी में भारत में जन्म लिया। वे हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की सीमाओं को पार कर एक सार्वभौमिक आध्यात्मिकता का संदेश फैलाने के लिए जाने जाते हैं।
कबीर दास की प्रमुख रचनाएँ क्या हैं?
कबीर दास की प्रमुख रचनाओं में ‘बीजक’, ‘साखी’, ‘सबद’, ‘रमैनी’, और ‘सुखनिधान’ शामिल हैं। ये रचनाएँ उनके धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों को प्रकट करती हैं।
कबीर दास का जन्म और मृत्यु कब और कहाँ हुई?
कबीर दास का जन्म 15वीं सदी में वाराणसी, भारत में हुआ था। उनकी मृत्यु मगहर में हुई थी, जहां वे एक धार्मिक मान्यता को चुनौती देने के लिए गए थे।
कबीर दास की शिक्षा का मुख्य संदेश क्या था?
कबीर दास का मुख्य संदेश था कि ईश्वर एक है और उसे किसी विशेष धार्मिक स्थल, पूजा विधि, या जाति के माध्यम से नहीं पाया जा सकता। उन्होंने समाज में फैले अंधविश्वास और धार्मिक विभाजन की आलोचना की।
कबीर दास के भजन और दोहे क्या महत्व रखते हैं?
कबीर दास के भजन और दोहे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन की सरलता और गहराई को व्यक्त करते हैं। उनके दोहे और भजन गहरी सच्चाई, मानवता, और ईश्वर के प्रति भक्ति को प्रकट करते हैं।
कबीर दास की भाषा और लेखन शैली कैसी थी?
कबीर दास ने अपनी रचनाओं को सरल और सहज भाषा में लिखा था, जिसमें उन्होंने अवधी, ब्रज, और भोजपुरी जैसी भाषाओं का उपयोग किया। उनकी लेखन शैली सीधी और प्रभावी थी।
कबीर चबूतरा और बीजक मंदिर के बारे में क्या जानकारी है?
कबीर चबूतरा वह स्थान है जहां कबीर दास ने अपने शिष्यों को ज्ञान और भक्ति का उपदेश दिया। बीजक मंदिर उस स्थान को संदर्भित करता है जहां कबीर दास की कृति ‘बीजक’ का सम्मान किया जाता है।
कबीर दास के गुरु कौन थे?
कबीर दास ने अपने गुरु के रूप में काशी के प्रसिद्ध महात्मा रामानंद को स्वीकार किया। हालांकि, कुछ विद्वानों का मानना है कि सूफी फकीर शेख तकी भी उनके गुरु थे।
कबीर दास की जयंती कब मनाई जाती है?
कबीर दास की जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर जून के महीने में आती है।
कबीर दास की समाधि कहाँ स्थित है?
कबीर दास की समाधि मगहर, उत्तर प्रदेश में स्थित है। यहाँ पर उनकी समाधि मंदिर और समाधि स्थल के रूप में महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं।