संधि हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण विषय है। इसका शाब्दिक अर्थ ‘मेल’ होता है, जिसका तात्पर्य है कि दो वर्णों के आपसी मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहा जाता है। संधि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण या ध्वनि और दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण या ध्वनि के मेल से एक नया स्वर बनता है। इस लेख में हम दीर्घ संधि के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिसमें परिभाषा, नियम, प्रकार और उदाहरण शामिल होंगे।
उदाहरण:
- विद्या + आलय = विद्यालय
- सत् + आनन्द = सदानन्द
- प्राण + आयाम = प्राणायाम
विद्यालय दो शब्दों विद्या और आलय से मिलकर बना है। पहले शब्द (विद्या) का अंतिम वर्ण ‘या‘ है और ‘या‘ वर्ण (या + अ) से मिलकर बना है। इसलिए विद्या का अंतिम वर्ण ‘अ‘ है। दूसरे शब्द (आलय) का पहला वर्ण ‘आ‘ है। जब अ + आ मिलता है, तो ‘आ‘ बनता है। इसलिए विद्या + आलय = विद्यालय।
दीर्घ संधि क्या है? (Dirgha Sandhi Kise Kahate Hain)
दीर्घ संधि एक प्रकार की स्वर संधि है जो संस्कृत में होती है। इसे “दीर्घ स्वर संधि” भी कहा जाता है। जब दो जातीय स्वर एक-दूसरे के पास आते हैं, तो वे मिलकर एक दीर्घ स्वर का रूप लेते हैं। यह संधि स्वरों के मेल से दीर्घ स्वर उत्पन्न करने की प्रक्रिया को दर्शाती है।
सूत्र: अक: सत्ये दीर्घ:
इसका मतलब है कि जब एक स्वर की जगह दूसरा दीर्घ स्वर लेता है, तो यह दीर्घ संधि कहलाती है।
दीर्घ संधि की परिभाषा
जब संस्कृत में दो जातीय स्वर वर्ण आपस में मिलते हैं, तो वे संधि के नियमों के तहत एक दीर्घ स्वर में बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया को “दीर्घ संधि” कहते हैं। यहाँ पर दो समान जातीय स्वर एक साथ मिलकर दीर्घ स्वर का रूप ले लेते हैं, जिससे उनका मिलन एक लंबा और विस्तारित स्वर उत्पन्न करता है।
उदाहरण:
- सागर + अंत = सागरत (अ + अ = आ)
- आदि + अंश = आदिशंश (आ + अ = आ)
दीर्घ संधि के चार नियम होते हैं
दीर्घ संधि के नियम स्वर संधियों के दौरान स्वरों के मिलन और उनके रूपांतरण को व्यवस्थित करते हैं। ये नियम बताते हैं कि विभिन्न स्वरों के संधि के समय किस प्रकार के दीर्घ स्वर उत्पन्न होते हैं। यहाँ पर चार प्रमुख नियम दिए गए हैं:
नियम 1. अ/आ + अ/आ = अ
जब दो समान जातीय स्वर अ या आ एक साथ आते हैं, तो संधि के बाद भी स्वर अ ही रहता है।
- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- गृह + अन्न = गृहाण्न
- रात्रि + ईश्वर = रात्रेश्वर
- अग्नि + अग्नि = अग्नि
- आयु + अमृत = आयामृत
- रात्रि + अन्न = रात्रिअन्न
- वृक्ष + अन्न = वृक्षाण्न
- सगर + अद्भुत = सगरअद्भुत
- कर्म + अमृत = कर्मामृत
- गृह + अमृत = गृहामृत
नियम 2. इ और इ की संधि
यहाँ “इ” और “इ” की संधि से दीर्घ स्वर ई उत्पन्न होता है।
- सिद्धि + इति = सिद्धिति
- मित्र + इति = मित्रेति
- रिपु + इति = रिपुति
- बुद्धि + इति = बुद्धिति
- विद्या + इति = विद्या
- मित + इति = मिति
- दृष्टि + इति = दृष्टिति
- शक्ति + इति = शक्ति
- कृप + इति = कृपि
- वृत्ति + इति = वृत्तिति
नियम 3. उ और उ की संधि
जब दो समान जातीय स्वर उ एक साथ आते हैं, तो संधि के बाद वे दीर्घ स्वर ऊ बन जाते हैं।
- गुरु + उपदेश = गुरु उपदेश
- दुरु + उल्लंघन = दुरुल्लंघन
- गुरु + उपनिषद = गुरु उपनिषद
- पुरुष + उक्ति = पुरुषूक्ति
- कुरु + उपदेश = कुरुपदेश
- पुरुष + उर्व = पुरुषूर्व
- सुकृत + उक्ति = सुकृतउक्ति
- विपत्ति + उक्ति = विपत्तिउक्ति
- अतुल + उक्ति = अतुलउक्ति
- सुदूर + उक्ति = सुदूरउक्ति
नियम 4. ऋ और ॠ की संधि
जब दो समान जातीय स्वर ऋ एक साथ आते हैं, तो संधि के बाद वे दीर्घ स्वर ॠ बन जाते हैं।
- ऋषि + ऋण = ऋषिरण
- ऋतु + ऋण = ऋतु ऋण
- ऋण + ऋषि = ऋणऋषि
- ऋच + ऋषि = ऋचऋषि
- वृक्ष + ऋण = वृक्षऋण
- ऋषि + ऋण = ऋषि ऋण
- ऋषि + ऋत = ऋषि ऋत
- ऋषि + ऋण = ऋषि ऋण
- ऋषि + ऋषि = ॠषि
- ऋतु + ऋण = ऋतु ऋण
दीर्घ संधि के उदाहरण
अ/आ + अ/आ = अ
उदाहरण | संधि |
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ | अ + अ = अ |
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय | अ + अ = अ |
विद्या + अर्थी = शिष्य | अ + अ = अ |
रवि + इंद्र = मंडप | अ + अ = अ |
गिरि + ईश = बरबम | अ + अ = अ |
मुनि + ईश = मुनीष | अ + अ = अ |
मुनि + इंद्र = मुनिन्द्र | अ + अ = अ |
भानु + उदय = भानुोदय | अ + अ = अ |
वधू + ऊर्जा = वधूविधु | अ + अ = अ |
भू + उर्जित = भूर्जित | अ + अ = अ |
अधि + अंश = अधिकांश | अ + अ = अ |
इ + इ = ई
उदाहरण | संधि |
अति + इव = अतिव | इ + इ = ई |
अभि + इष्ट = अभीष्ट | इ + इ = ई |
कपि + इंद्र = कपिन्द्र | इ + इ = ई |
कवि + इंद्र = कविन्द्र | इ + इ = ई |
क्षिति + इंद = क्षितिन्द्र | इ + इ = ई |
गिरी + इंद्र = गिरीन्द्र | इ + इ = ई |
प्रति + इति = विशेषता | इ + इ = ई |
मुनि + इंद्र = मुनींद्र | इ + इ = ई |
रवि + इंद्र = मंडप | इ + इ = ई |
बृंद + इंद्र = बृंदिंद्र | इ + इ = ई |
उ + उ = ऊ
उदाहरण | संधि |
सु + उक्ति = सूक्ति | उ + उ = ऊ |
भानु + उदय = भानुोदय | उ + उ = ऊ |
गुरु + उपदेश = गुरुपदेश | उ + उ = ऊ |
लघु + उत्तर = लघुखंड | उ + उ = ऊ |
सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धुर्मि | उ + उ = ऊ |
लघु + ऊर्मि = लघुउर्मि | उ + उ = ऊ |
बहु + ऊर्ध्व = बहुर्ध्व | उ + उ = ऊ |
अम्बु + ऊर्मि = अबुर्मि | उ + उ = ऊ |
भानु + ऊर्ध्व = भानुवर्ध्व | उ + उ = ऊ |
भू + ऊर्जा = भूर्जा | उ + उ = ऊ |
ऋ + ऋ = ॠ
उदाहरण | संधि |
मातृ + तृण = मातृण | ऋ + ऋ = ॠ |
पितृ + ऋण = पितृण | ऋ + ऋ = ॠ |
ऋषि + ऋण = ऋषि ऋण | ऋ + ऋ = ॠ |
वृक्ष + ऋण = वृक्षऋण | ऋ + ऋ = ॠ |
ऋषि + ऋषि = ॠषि | ऋ + ऋ = ॠ |
वृष्टि + ऋण = वृष्टि ऋण | ऋ + ऋ = ॠ |
धर्म + ऋण = धर्मऋण | ऋ + ऋ = ॠ |
मृदु + ऋण = मृदुऋण | ऋ + ऋ = ॠ |
सृजन + ऋण = सृजनऋण | ऋ + ऋ = ॠ |
तृष्णा + ऋण = तृष्णारण | ऋ + ऋ = ॠ |
आशा है कि आपको यह ब्लॉग “Dirgha Sandhi Kise Kahate Hain” पसंद आया होगा। यदि आप कोट्स पर और ब्लॉग्स पढ़ना चाहते हैं, तो iaspaper के साथ जुड़े रहें।
FAQs
दीर्घ संधि क्या है?
दीर्घ संधि वह प्रक्रिया है जिसमें दो जातीय स्वर वर्णों के संयोग से एक दीर्घ स्वर वर्ण का निर्माण होता है। उदाहरण के तौर पर, अ + अ = आ, इ + इ = ई, आदि।
दीर्घ संधि के नियम क्या हैं?
दीर्घ संधि के मुख्य नियमों में शामिल हैं:
अ + अ = अ
अ + आ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ
ऋ + ऋ = ॠ
दीर्घ संधि में अ + अ = अ का उदाहरण क्या है?
उदाहरण: धर्म + अर्थ = धर्मार्थ (अ + अ = अ)
दीर्घ संधि में अ + आ = आ का उदाहरण क्या है?
उदाहरण: कुश + अरण = कुशासन (अ + आ = आ)
दीर्घ संधि में इ + इ = ई का उदाहरण क्या है?
उदाहरण: कपि + इंद्र = कपिन्द्र (इ + इ = ई)
दीर्घ संधि में उ + उ = ऊ का उदाहरण क्या है?
उदाहरण: सु + उक्ति = सूक्ति (उ + उ = ऊ)
दीर्घ संधि में ऋ + ऋ = ॠ का उदाहरण क्या है?
उदाहरण: मातृ + तृण = मातृण (ऋ + ऋ = ॠ)
दीर्घ संधि को अन्य संधियों से कैसे अलग किया जा सकता है?
दीर्घ संधि विशेष रूप से स्वर संधि में आती है, जहां दो समान या जातीय स्वर मिलकर एक दीर्घ स्वर में बदल जाते हैं। अन्य संधियाँ जैसे गुण संधि या वृद्धि संधि स्वर और व्यंजन की विभिन्न श्रेणियों में काम करती हैं।
क्या दीर्घ संधि केवल संस्कृत में होती है या अन्य भाषाओं में भी?
दीर्घ संधि संस्कृत की एक विशिष्ट प्रक्रिया है, लेकिन इसी तरह की संधि प्रक्रियाएँ अन्य भारतीय भाषाओं जैसे पाली, प्राकृत और हिंदी में भी देखने को मिलती हैं, जहाँ स्वर संयोजन होते हैं।
दीर्घ संधि का उपयोग किस प्रकार के लेखन या भाषाशास्त्र में होता है?
दीर्घ संधि का उपयोग संस्कृत लेखन, शास्त्रीय ग्रंथों, वैदिक मंत्रों, और भाषाशास्त्र के अध्ययन में होता है। यह विशेषकर संस्कृत साहित्य और शास्त्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।