संधि हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। इसका शाब्दिक अर्थ है – मेल। दो वर्णों या ध्वनियों के परस्पर मिलन से जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहा जाता है। संधि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण या ध्वनि और दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण या ध्वनि का मेल होने पर एक नया स्वर बनता है। इस लेख में हम स्वर संधि के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिसमें स्वर संधि की परिभाषा, नियम, प्रकार और उदाहरण शामिल होंगे।
स्वर संधि की परिभाषा:
स्वर संधि वह प्रक्रिया है जिसमें एक शब्द के अंतिम स्वर और दूसरे शब्द के प्रारंभिक स्वर के मेल से एक नया स्वर उत्पन्न होता है। यह आमतौर पर जब दो स्वरों का मेल होता है, तब नया स्वर बनता है।
उदाहरण:
- हिमालय: ‘हिम’ और ‘आलय’ शब्दों का मेल। यहाँ ‘हिम’ का अंतिम स्वर ‘अ’ और ‘आलय’ का प्रारंभिक स्वर ‘आ’ मिलकर ‘आ’ बनता है।
- विद्यालय: ‘विद्या’ और ‘आलय’ शब्दों का मेल। यहाँ ‘विद्या’ का अंतिम स्वर ‘अ’ और ‘आलय’ का प्रारंभिक स्वर ‘आ’ मिलकर ‘आ’ बनता है।
स्वर संधि क्या है?
स्वर संधि तब होती है जब दो स्वर (स्वराक्षर) आपस में मिलते हैं और एक नया स्वर बनाते हैं। हिंदी में 11 मुख्य स्वर होते हैं, और जब इन स्वरों को मिलाया जाता है, तो एक नया स्वर बनता है। इस प्रक्रिया को स्वर संधि कहा जाता है।
उदाहरण के लिए:
- राज + उपाधि = राजुपाधि
- कुमार + आशीर्वाद = कुमाराशीरवाड
- सागर + एक = सागरेक
- सपना + आग = सपनाग
- शक्ति + आना = शक्ति आना
स्वर संधि के प्रकार
स्वर संधि के पांच प्रकार निम्नलिखित हैं:
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- अयादि संधि
दीर्घ संधि
दीर्घ संधि में जब दो समान स्वरों के बीच संधि होती है, तो वे मिलकर एक दीर्घ स्वर बना लेते हैं।
इस संधि के चार रूप होते हैं:
- अ + अ या आ + आ मिलकर आ बनता है।
- इ + इ या ई + ई मिलकर ई बनता है।
- उ + उ या ऊ + ऊ मिलकर ऊ बनता है।
- ऋ + ऋ मिलकर ऋ बनता है।
उदाहरण:
शब्द | संधि | संधि के स्वरों का मिलान |
अन्यान्य | अन्य + अन्य | य |
असुरालय | असुर + आलय | अय |
अनाथालय | अनाथ + आलय | अय |
अभीष्ट | अभि + इष्ट | य |
अतीव | अति + इव | य |
अतीन्द्रिय | अति + इन्द्रिय | य |
अयनांश | अयन + अंश | य |
अनाथाश्रम | अनाथ + आश्रम | अय |
आशातीत | आशा + अतीत | अय |
अन्नाभाव | अन्न + अभाव | अय |
ऊहापोह | ऊह + अपोह | व |
अत्तरायन | उत्तर + अयन | व |
एकांकी | एक + अंकी | य |
एकानन | एक + आनन | य |
ऐतरारण्यक | ऐतरेय + आरण्यक | अय |
कपीश | कपि + ईश | य |
करूणामृत | करूण + अमृत | य |
कमान्ध | काम + अन्ध | अय |
कामारि | काम + अरि | अय |
कृपाचार्य | कृपा + आचार्य | य |
कृपाकांक्षी | कृपा + आकांक्षी | य |
कृष्णानन्द | कृष्ण + आनन्द | य |
केशवारि | केशव + अरि | अय |
कोमलांगी | कोमल + अंगी | य |
कंसारि | कंस + अरि | अय |
कवीन्द्र | कवि + इन्द्र | य |
कवीश | कवि + ईश | य |
कल्पान्त | कल्प + अन्त | य |
कुशासन | कुश + आसन | य |
कौरवारि | कौरव + अरि | अय |
केशान्त | केश + अन्त | य |
कुशाग्र | कुश + अग्र | य |
गिरीश | गिरि + ईश | य |
गजानन | गज + आनन | य |
गिरीन्द्र | गिरि + इन्द्र | य |
गुरूपदेश | गुरू + उपदेश | य |
गीतांजलि | गीत + अंजलि | य |
गेयात्मकता | गेय + आत्मकता | य |
गोत्राध्याय | गोत्र + अध्याय | य |
घनानंद | घन + आनंद | य |
घनान्धकार | घन + अन्धकार | य |
चतुरानन | चतुर + आनन | य |
चन्द्राकार | चन्द्र + आकार | य |
चरणायुध | चरण + आयुध | य |
चरणामृत | चरण + अमृत | य |
चरणारविंद | चरण + अरविंद | य |
चमूत्साह | चमू + उत्साह | व |
चरित्रांकन | चरित्र + अंकन | य |
चिरायु | चिर + आयु | य |
छात्रावस्था | छात्र + अवस्था | य |
छात्रावास | छात्र + आवास | य |
जलाशय | जल + आशय | य |
जन्मान्तर | जन्म + अन्तर | य |
जनाश्रय | जन + आश्रय | य |
जनकांगजा | जनक + अंगजा | य |
जानकीश | जानकी + ईश | य |
जीर्णांचल | जीर्ण + अंचल | य |
जिह्वाग्र | जिह्वा + अग्र | य |
झंझानिल | झंझा + अनिल | व |
तथागत | तथा + आगत | अय |
तथापि | तथा + अपि | अय |
तिमिराच्छादित | तिमिर + आच्छादित | अय |
तमसाच्छन्न | तमस + आच्छादन | अय |
तिमिरारि | तिमिर + अरि | अय |
तुरीयावस्था | तुरीय + अवस्था | य |
तुषारावृत | तुषार + आवृत | य |
त्रिगुणातीत | त्रिगुण + अतीत | य |
दर्शनार्थ | दर्शन + अर्थ | य |
दावाग्नि | दाव + अग्नि | व |
दावानल | दाव + अनल | व |
गुण संधि
गुण संधि तब होती है जब स्वर ‘अ’ या ‘आ’ के साथ इ/ई, ऊ/ऊ, या ऋ मिलकर विशेष स्वरों का निर्माण करते हैं।
गुण संधि के नियम निम्नलिखित हैं:
- अ या आ के साथ इ या ई मिलने पर ए बनता है।
- अ या आ के साथ उ या ऊ मिलने पर ओ बनता है।
- अ या आ के साथ ऋ मिलने पर अर बनता है।
उदाहरण:
संधि | मूल शब्द | संधि के स्वरों का मिलान |
आत्मोत्सर्ग | आत्म + उत्सर्ग | आ + उ |
अर्थोपार्जन | अर्थ + उपार्जन | अ + आ |
आनंदोत्सव | आनंद + उत्सव | आ + उ |
ईश्वरेच्छा | ईश्वर + इच्छा | ई + इ |
उपेक्षा | उप + ईक्षा | उ + इ |
ऊर्मिलेश | ऊर्मिला + ईश | ऊ + ई |
उमेश | उमा + ईश | उ + ई |
एकेश्वर | एक + ईश्वर | अ + ई |
कमलेश | कमल + ईश | अ + ई |
कर्णोद्धार | कर्ण + उधार | अ + उ |
खगेश्वर | खग + ईश्वर | अ + ई |
खगेश | खग + ईश | अ + ई |
खगेन्द्र | खग + इन्द्र | अ + इ |
गंगोदक | गंगा + उदक | अ + उ |
गजेन्द्र | गज + इन्द्र | अ + इ |
ग्रामोद्धार | ग्राम + उद्धार | अ + उ |
गणेश | गण + ईश | अ + ई |
ग्रामोद्योग | ग्राम + उद्योग | अ + उ |
गंगोर्मि | गंगा + ऊर्मि | अ + उ |
गंगेश | गंगा + ईश | अ + ई |
चन्द्रोदय | चन्द्र + उदय | अ + उ |
चिन्तोन्मुक्त | चिन्ता + उन्मुक्त | इ + उ |
जलोर्मि | जल + ऊर्मि | अ + उ |
जन्मोत्सव | जन्म + उत्सव | अ + उ |
जितेन्द्रिय | जित + इन्द्रिय | अ + इ |
झण्डोत्तोलन | झण्डा + उत्तोलन | अ + उ |
डिम्बोद्घोष | डिम्ब + उद्घोष | अ + उ |
तारकेश्वर | तारक + ईश्वर | अ + ई |
तारकेश | तारक + ईश | अ + ई |
तपेश्वर | तप + ईश्वर | अ + ई |
थानेश्वर | थाना + ईश्वर | अ + ई |
देवर्षि | देव + ऋषि | अ + ऋ |
देवेश | देव + ईश | अ + ई |
देवेन्द्र | देव + इन्द्र | अ + इ |
दर्शनेच्छा | दर्शन + इच्छा | अ + इ |
दीपोत्सव | दीप + उत्सव | अ + उ |
देवोत्थान | देव + उत्थान | अ + उ |
धर्मोपदेश | धर्म + उपदेश | अ + इ |
धनेश | धन + ईश | अ + ई |
धारोष्ण | धारा + ऊष्ण | अ + ऊ |
धीरोदात्त | धीर + उदात्त | अ + उ |
धीरोद्धत | धीर + उद्धत | अ + उ |
ध्वजोत्तोलन | ध्वज + उत्तोलन | अ + उ |
नागेंद्र | नाग + इन्द्र | अ + इ |
नागेश | नाग + ईश | अ + ई |
नरेश | नर + ईश | अ + ई |
नरेन्द्र | नर + इन्द्र | अ + इ |
नदीश | नदी + ईश | अ + ई |
नवोदय | नव + उदय | अ + उ |
नीलोत्पल | नील + उत्पल | अ + उ |
नक्षत्रेश | नक्षत्र + ईश | अ + ई |
पदोन्नति | पद + उन्नति | अ + उ |
परोपकार | पर + उपकार | अ + उ |
परमेश्वर | परम + ईश्वर | अ + ई |
पश्चिमोत्तर | पश्चिम + उत्तर | अ + उ |
पुरूषोत्तम | पुरूष + उत्तम | अ + उ |
पूर्वोदय | पूर्व + उदय | अ + उ |
प्रोत्साहन | प्र + उत्साहन | अ + उ |
पुष्पोद्ध्यान | पुष्प + उद्ध्यान | अ + उ |
प्राणेश्वर | प्राण + ईश्वर | अ + ई |
फलेच्छा | फल + इच्छा | अ + इ |
फलोदय | फल + उदय | अ + उ |
फेनोज्ज्वल | फेन + उज्जवल | अ + उ |
बालेन्द्र | बाल + इन्द्र | अ + इ |
ब्रजेश | ब्रज + ईश | अ + ई |
ब्रह्मर्षि | ब्रह्म + ऋषि | अ + ऋ |
भाग्योदय | भाग्य + उदय | अ + उ |
भवेश | भव + ईश | अ + ई |
भावेश | भाव + ईश | अ + ई |
भुजगेन्द्र | भुजग + इन्द्र | अ + इ |
भुवनेश्वर | भुवन + ईश्वर | अ + ई |
भूपेश | भूप + ईश | अ + ई |
भूतेश | भूत + ईश | अ + ई |
भूतेश्वर | भूत + ईश्वर | अ + ई |
मदोन्मत्त | मद + उन्मत्त | अ + उ |
मदनोत्सव | मदन + उत्सव | अ + उ |
महोत्सव | महा + उत्सव | अ + उ |
महर्षि | महा + ऋषि | अ + ऋ |
महेन्द्र | महा + इन्द्र | अ + इ |
मरणोपरांत | मरण + उपरान्त | अ + उ |
महेश | महा + ईश | अ + ई |
महोदय | महा + उदय | अ + उ |
महोपदेश | महा + उपदेश | अ + इ |
मृगेन्द्र | मृग + इन्द्र | अ + इ |
यथेष्ट | यथा + इष्ट | अ + इ |
यथोचित | यथा + उचित | अ + उ |
यज्ञोपवीत | यज्ञा + उपवीत | अ + उ |
योगेन्द्र | योग + इन्द्र | अ + इ |
रमेश | रमा + ईश | अ + ई |
रमेन्द्र | रमा + इन्द्र | अ + इ |
राकेश | राका + ईश | अ + ई |
राजर्षि | राजा + ऋषि | अ + ऋ |
राजेन्द्र | राजा + इन्द्र | अ + इ |
राघवेन्द्र | राघव + इन्द्र | अ + इ |
रामेश्वर | राम + ईश्वर | अ + ई |
रावणेश्वर | रावण + ईश्वर | अ + ई |
लंबोदर | लंबा + उदर | अ + उ |
लंकेश्वर | लंका + ईश्वर | अ + ई |
लोकोक्ति | लोक + उक्ति | अ + उ |
लोकेश | लोक + ईश | अ + ई |
लुप्तोपमा | लुप्त + उपमा | अ + उ |
लोकोत्तर | लोक + उत्तर | अ + उ |
वनोत्सव | वन + उत्सव | अ + उ |
वसंतोत्सव | वसंत + उत्सव | अ + उ |
वामेश्वर | वाम + ईश्वर | अ + ई |
विद्योपार्जन | विद्या + उपार्जन | अ + आ |
विकासोन्मुख | विकाश + उन्मुख | अ + उ |
विजयेच्छा | विजय + इच्छा | अ + इ |
विजयेश | विजय + ईश | अ + ई |
विद्या | विद्या + ईश | अ + इ |
विमर्श | विमर्श + इष्ट | अ + इ |
विष्णुपाद | विष्णु + पद | अ + प |
विष्णुपति | विष्णु + पति | अ + प |
वेदांत | वेद + अंत | अ + अ |
वेदेष्ट | वेद + ईष्ट | अ + इ |
वेदप्रकाश | वेद + प्रकाश | अ + आ |
वेदज्ञ | वेद + ज्ञ | अ + ज्ञ |
वेदवेद्या | वेद + विद्या | अ + आ |
वेदेश्वर | वेद + ईश्वर | अ + ई |
वामदेव | वाम + देव | अ + द |
वाणी | वान + ई | अ + ई |
वर्धन | वर्ध + न | अ + न |
वर्जन | वर्ज + न | अ + न |
वज्रेश्वर | वज्र + ईश्वर | अ + ई |
विजयेश | विजय + ईश | अ + ई |
वृषभेश | वृषभ + ईश | अ + ई |
वेश्या | वेश + या | अ + य |
विद्येश्वरी | विद्य + ईश्वरी | अ + ई |
विद्याशक्ति | विद्य + शक्ति | अ + श |
विन्देश्वर | विन्द + ईश्वर | अ + ई |
व्रतशक्ति | व्रत + शक्ति | अ + श |
व्रताधिकार | व्रत + अधिकार | अ + अ |
व्रात्य | व्रत + त्य | अ + त |
व्रातिक | व्रत + इक | अ + इ |
व्रास्टीक | व्रत + इक | अ + इ |
वृद्धि संधि
वृद्धि संधि का नियम निम्नलिखित है:
- यदि ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’ आता है, तो ‘ऐ’ बन जाता है।
- यदि ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘ओ’ या ‘औ’ आता है, तो ‘औ’ बन जाता है।
उदाहरण:
परिणाम | संधि | संधि के स्वरों का मिलान |
अद्यैव | अद्य + एव | अ + एव (ऐ) |
एकैक | एक + एक | अ + ऐ (ऐ) |
गंगौघ | गंगा + ओघ | अ + ओ (औ) |
गंगेश्वर्य | गंगा + ऐश्वर्य | अ + ऐ (ऐ) |
गृहौत्सुक्य | गृह + औत्सुक्य | अ + औ (औ) |
जलौघ | जल + ओघ | अ + ओ (औ) |
टिकैत | टिक + ऐत | अ + ऐ (ऐ) |
तथैव | तथा + एव | अ + एव (ऐ) |
परमौषध | परम + औषध | अ + औ (औ) |
परमौषधि | परम + ओषधि | अ + ओ (औ) |
परमौदार्य | परम + औदार्य | अ + औ (औ) |
परमौजस्वी | परम + ओजस्वी | अ + ओ (औ) |
बिम्बौष्ठ | बिम्ब + ओष्ठ | अ + ओ (औ) |
मतैक्य | मत + ऐक्य | अ + ऐ (ऐ) |
महैश्वर्य | महा + ऐश्वर्य | अ + ऐ (ऐ) |
महौज | महा + ओज | अ + ओ (औ) |
महौषध | महा + औषध | अ + औ (औ) |
वध्वैश्वर्य | वधू + ऐश्वर्य | अ + ऐ (ऐ) |
वसुधैव | वसुधा + एव | अ + एव (ऐ) |
वनौषधि | वन + औषधि | अ + औ (औ) |
सदैव | सदा + एव | अ + एव (ऐ) |
हितैषी | हित + ऐषी | अ + ऐ (ऐ) |
यण संधि
यण संधि में, यदि इ/ई, उ/ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आते हैं, तो:
- इ/ई के बाद आने वाले स्वर के साथ य बन जाता है।
- उ/ऊ के बाद आने वाले स्वर के साथ व बन जाता है।
- ऋ के बाद आने वाले स्वर के साथ र बन जाता है।
उदाहरण:
परिणाम | संधि | संधि के स्वरों का मिलान |
अन्वेषण | अनु + एषण | ए + षण (ए → अय) |
अन्वय | अनु + अय | अ + य (अ → अय) |
अत्याचार | अति + आचार | आ + चार (आ → आ) |
आद्यन्त | आदि + अंत | अ + अंत (अ → अ) |
अत्यन्त | अति + अन्त | अ + अन्त (अ → अ) |
अत्यधिक | अति + अधिक | अ + अधिक (अ → अ) |
अत्यावश्यक | अति + आवश्यक | अ + आवश्यक (अ → अ) |
अत्युत्तम | अति + उत्तम | अ + उत्तम (अ → अ) |
अन्वीक्षण | अनु + ईक्षण | ई + षण (ई → य) |
अभ्यागत | अभि + आगत | आ + गत (आ → अ) |
अभ्युदय | अभि + उदय | उ + य (उ → व) |
इत्यादि | इति + आदि | इ + आदि (इ → य) |
उपर्युक्त | उपरि + उक्त | उ + उक्त (उ → व) |
गत्यवरोध | गति + अवरोध | अ + अव (अ → अय) |
गत्यात्मक | गति + आत्मक | अ + आत्मक (अ → अ) |
गत्यात्मकता | गति + आत्मकता | अ + आत्मकता (अ → अ) |
गीत्युपदेश | गीति + उपदेश | ई + उपदेश (ई → य) |
गौर्यादेश | गौरी + आदेश | ऐ + आदेश (ऐ → आय) |
देव्यागम | देवी + आगम | ई + आगम (ई → य) |
दध्योदन | दधि + ओदन | ओ + दन (ओ → औ) |
ध्वन्यात्मक | ध्वनि + आत्मक | अ + आत्मक (अ → अ) |
न्यून | नि + ऊन | उ + ऊन (उ → व) |
प्रत्यय | प्रति + अय | अ + य (अ → अय) |
प्रत्युत्तर | प्रति + उत्तर | अ + उत्तर (अ → अ) |
प्रत्येक | प्रति + एक | अ + एक (अ → अ) |
प्रत्युपकार | प्रति + उपकार | अ + उपकार (अ → अ) |
प्रत्यक्ष | प्रति + अक्ष | अ + अक्ष (अ → अ) |
पश्वादि | पशु + आदि | अ + आदि (अ → अय) |
पश्वधम | पशु + अधम | अ + अधम (अ → अ) |
माध्वाचार्य | मधु + आचार्य | आ + आचार्य (आ → आ) |
मन्वंतर | मनु + अन्तर | अ + अन्तर (अ → अ) |
मध्वासव | मधु + आसव | अ + आसव (अ → अ) |
मात्रानंद | मातृ + आनंद | अ + आनंद (अ → अ) |
यद्यपि | यदि + अपि | अ + अपि (अ → अ) |
लघ्वाहार | लघु + आहार | अ + आहार (अ → अ) |
लोटा | लृ + ओटा | ओ + ओटा (ओ → औ) |
व्यर्थ | वि + अर्थ | अ + अर्थ (अ → अ) |
व्यापक | वि + आपक | अ + आपक (अ → अ) |
व्याप्त | वि + आप्त | अ + आप्त (अ → अ) |
व्याकुल | वि + आकुल | अ + आकुल (अ → अ) |
व्यायाम | वि + आयाम | अ + आयाम (अ → अ) |
व्याधि | वि + आधि | अ + आधि (अ → अ) |
व्याघात | वि + आघात | अ + आघात (अ → अ) |
व्युत्पति | वि + उत्पत्ति | अ + उत्पत्ति (अ → अ) |
व्यूह | वि + ऊह | ऊ + ऊह (ऊ → व) |
वध्वागमन | वधू + आगमन | अ + आगमन (अ → अ) |
वध्वैश्वर्य | वधू + ऐश्वर्य | ऐ + ऐश्वर्य (ऐ → आय) |
स्वागत | सु + आगत | अ + आगत (अ → अ) |
स्वल्प | सु + अल्प | अ + अल्प (अ → अ) |
अयादि संधि
अयादि संधि में, यदि ए, ऐ, ओ, और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो:
- ए के साथ आने वाले स्वर के साथ अय बन जाता है।
- ऐ के साथ आने वाले स्वर के साथ आय बन जाता है।
- ओ के साथ आने वाले स्वर के साथ अव बन जाता है।
- औ के साथ आने वाले स्वर के साथ आव बन जाता है।
उदाहरण:
परिणाम | संधि | संधि के स्वरों का मिलान |
गायक | गै + अक | गै + अक (गै → य) |
गायिका | गै + इका | गै + इका (गै → य) |
गायन | गै + अन | गै + अन (गै → य) |
चयन | चे + अन | चे + अन (चे → य) |
धावक | धौ + अक | धौ + अक (धौ → व) |
नयन | ने + अन | ने + अन (ने → य) |
नायक | नै + अक | नै + अक (नै → य) |
नायिका | नै + इका | नै + इका (नै → य) |
नाविक | नौ + इक | नौ + इक (नौ → व) |
पवन | पो + अन | पो + अन (पो → व) |
पावन | पौ + अन | पौ + अन (पौ → व) |
पावक | पौ + अक | पौ + अक (पौ → व) |
पवित्र | पो + इत्र | पो + इत्र (पो → व) |
भवन | भो + अन | भो + अन (भो → व) |
भाविक | भौ + उक | भौ + उक (भौ → व) |
रावण | रौ + अन | रौ + अन (रौ → व) |
शयन | शे + अन | शे + अन (शे → य) |
शायक | शै + अक | शै + अक (शै → य) |
शावक | शौ + अक | शौ + अक (शौ → व) |
श्रवण | श्रो + अन | श्रो + अन (श्रो → य) |
श्रावण | श्री + अन | श्री + अन (श्री → य) |
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FAQs
स्वर संधि क्या है?
जब दो स्वर मिलकर एक नया स्वर उत्पन्न करते हैं, उसे स्वर संधि कहते हैं। यह संधि हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्वर संधि के कितने प्रकार होते हैं?
स्वर संधि के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं:
दीर्घ संधि
गुण संधि
वृद्धि संधि
दीर्घ संधि क्या होती है?
जब ‘अ’ या ‘आ’ के साथ ‘अ’ या ‘आ’ मिलता है, तो दीर्घ संधि होती है और परिणामस्वरूप ‘आ’ बनता है। जैसे: राम + अल = रामाल (दीर्घ संधि)।
गुण संधि में किस प्रकार के स्वर शामिल होते हैं?
गुण संधि में अ, आ के साथ इ, ई और उ, ऊ स्वर मिलते हैं और उनके स्थान पर ए, ओ आते हैं। उदाहरण:
इन्द्र + अ = इन्द्र + ए = इन्द्र (गुण संधि)
वृद्धि संधि क्या होती है?
जब अ, आ के साथ ए, ओ स्वर मिलते हैं, तो उनके स्थान पर ऐ, औ बन जाते हैं। उदाहरण:
देव + अ = देव + ऐ = देव (वृद्धि संधि)
स्वर संधि का क्या महत्व है?
स्वर संधि शब्दों के उच्चारण में सामंजस्य स्थापित करती है और वाक्यों को सरल और सुबोध बनाती है।
स्वर संधि का प्रयोग कब होता है?
जब दो शब्दों के बीच स्वर आते हैं, तब संधि का नियम लागू होता है। यह शब्दों को मिलाकर नए शब्द बनाने में सहायक होती है।
क्या स्वर संधि के सभी प्रकार अनिवार्य हैं?
नहीं, सभी प्रकार की संधियाँ हर शब्द में नहीं होतीं। यह शब्दों के उच्चारण और अर्थ पर निर्भर करता है कि कौन-सी संधि लागू होगी।
स्वर संधि और व्यंजन संधि में क्या अंतर है?
स्वर संधि में दो स्वरों के मिलने से नया स्वर बनता है, जबकि व्यंजन संधि में व्यंजन और स्वर या दो व्यंजनों के मिलने से संधि होती है।
स्वर संधि का उदाहरण दीजिए।
उदाहरण:
राम + अर्चना = रामार्चना (दीर्घ संधि)
हरि + इन्द्र = हर्यिन्द्र (गुण संधि)