Sandhi Viched -आसान तरीके से परिभाषा और नियम

संधि, हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका शाब्दिक अर्थ “मेल” होता है। यह दो वर्णों या शब्दों के आपसी मेल से होने वाले परिवर्तनों को दर्शाता है। संधि के माध्यम से, विभिन्न ध्वनियों और अक्षरों का आपसी समन्वय किया जाता है, जिससे शब्दों की रचना और उनकी अर्थवत्ता प्रभावित होती है।

हिंदी में संधि मुख्यतः तीन प्रकार की होती है: स्वर संधि, व्यंजन संधि, और विसर्ग संधि। स्वर संधि में, स्वर वर्णों के मेल से उत्पन्न बदलाव होते हैं, जैसे कि ‘आ’ और ‘अ’ के मिलन से ‘आदमी’ शब्द बनता है। व्यंजन संधि में, व्यंजन वर्णों के मेल से होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है, जैसे कि ‘त’ और ‘य’ के मिलन से ‘त्याग’ बनता है। विसर्ग संधि में विसर्ग के बाद स्वर के मिलन पर होने वाले परिवर्तनों को देखा जाता है, जैसे कि ‘ः’ और ‘अ’ के मिलन से ‘आ’ बन जाता है।

संधि विच्छेद का तात्पर्य है दो संधि युक्त शब्दों को उनके मूल रूप में पुनः अलग करना, जो शब्द की सही संरचना और अर्थ को स्पष्ट करता है। संधि और संधि विच्छेद का प्रयोग शब्द निर्माण और भाषा की स्पष्टता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

संधि विच्छेद क्या है?

संधि विच्छेद हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका मतलब है किसी शब्द के संधि द्वारा मिलाए गए भागों को अलग-अलग करके उनका विश्लेषण करना। संधि विच्छेद से यह पता चलता है कि दो शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं, और कैसे वे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

उदाहरण के लिए:

संधिविच्छेदअर्थ
वेदार्थवेद + अर्थवेद का अर्थ
कृष्णानन्दकृष्ण + आनन्दकृष्ण का आनन्द
रामायणराम + आयनराम से संबंधित
संसारसं + संसारसं की उपसर्ग से संसार
भगवानभग + वानभगवान का रूप
शिवालयशिव + आलयशिव का स्थान
साधारणसाधार + अनसाधारण (साधार + अन)
पुस्तकालयपुस्तक + आलयपुस्तकों का स्थान
नागराजनाग + राजानागों का राजा
मित्रवतमित्र + वातमित्र की तरह

संधि के प्रकार

संधि के तीन प्रकार होते हैं

  1. स्वर संधि
  2. विसर्ग संधि
  3. व्यंजन संधि

स्वर संधि

स्वर संधि तब होती है जब दो स्वर आपस में मिलकर एक नया स्वर उत्पन्न करते हैं या उनके बीच कोई परिवर्तन होता है। हिंदी में कुल 11 स्वर होते हैं, जो हैं:

पहला स्वरदूसरा स्वरपरिणामस्वरउदाहरण
कल + अ = कला
कल + आ = कला
दिन + इ = दिन
मित्र + ई = मित्र
घर + उ = घर
पुर + ऊ = पुरू
ब्रह्मा + ऋ = ब्रह्मा
रात्रि + ए = रात्रि
जल + ऐ = जलऐ
घर + ओ = घर
चोर + औ = चोरौ

स्वर संधि के प्रकार

स्वर संधि के पांच प्रकार होते हैं

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादि संधि

दीर्घ संधि

परिभाषा: दीर्घ संधि तब होती है जब दो स्वर मिलकर एक दीर्घ (लंबा) स्वर उत्पन्न करते हैं। इसमें एक स्वर के साथ जुड़े हुए अन्य स्वर के कारण लंबा स्वर बनता है।

संधि के नियम:

  • जब “अ” स्वर “आ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “आ” बनता है।
  • जब “इ” स्वर “ई” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ई” बनता है।
  • जब “उ” स्वर “ऊ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऊ” बनता है।
  • जब “अ” स्वर “ऐ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऐ” बनता है।
  • जब “अ” स्वर “ओ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ओ” बनता है।

उदाहरण:

स्वरदूसरा स्वरपरिणामस्वरउदाहरण
राम + आ = रामआ
फल + ई = फली
गुरु + ऊ = गुरू
घर + ओ = घरो
चित्र + ई = चित्रा
पुरूष + ऊ = पुरूषू
जल + ऐ = जलै
टाट + ओ = टाटो
क्रीड़ा + आ = क्रीड़ा
विद्या + आ = विद्या
गुरु + आ = गुरु
विद्या + ऊ = विद्या ऊ
दुरगति + ई = दुरगति
जड़ी + ऐ = जड़ीऐ
कष्ट + ई = कष्टई
बिल्ली + ओ = बिल्लीओ
पुत्र + ऐ = पुत्रऐ
पति + आ = पति आ
हित + ई = हिति
प्रतिकूल + ऊ = प्रतिकूलू

गुण संधि

गुण संधि तब होती है जब एक स्वर के साथ मिलकर दूसरा स्वर गुणवान बनता है और एक नया स्वर उत्पन्न होता है। इसमें एक स्वर दूसरे स्वर को गुणित करता है, जिससे एक नए स्वर का निर्माण होता है।

गुण संधि के नियम:

  • जब दो “अ” स्वर मिलते हैं, तो परिणामस्वर “आ” बनता है।
  • जब “अ” और “इ” स्वर मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ए” बनता है।
  • जब “अ” और “ऊ” स्वर मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ओ” बनता है।
  • जब “इ” और “ई” स्वर मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ई” बनता है।
  • जब “उ” और “ई” स्वर मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऊ” बनता है।

उदाहरण:

पहला स्वरदूसरा स्वरपरिणामस्वरउदाहरण
पिता + आ = पिता
मन + इ = मनई
कल + ऊ = खो
विद्या + ई = विद्या
पूर + ई = पूरू
शत्रु + ए = शत्रु
भरो + ओ = भरो
कर्ता + आ = कर्ता
पीठ + उ = पीठ
मुख + अ = मुख
बिंदु + अ = बिंदु
परि + ऊ = परियों
नम + इ = नमई
मिल + ई = मिलई
द्रष्टा + आ = द्रष्टा
हो + ऊ = हो
लिपि + ओ = लिपि
धुरी + ई = धुरी
कर + इ = केर
धुन + ऊ = धुनू

वृद्धि संधि

वृद्धि संधि तब होती है जब एक स्वर मिलकर दूसरे स्वर को वृद्ध (बढ़ा हुआ) स्वर में परिवर्तित करता है। इसमें पहले स्वर के साथ मिलकर दूसरे स्वर की वृद्धि होती है, जिससे एक नया स्वर उत्पन्न होता है।

वृद्धि संधि के नियम:

  • जब “अ” स्वर “आ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “आ” बनता है।
  • जब “अ” स्वर “ई” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऐ” बनता है।
  • जब “इ” स्वर “आ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ई” बनता है।
  • जब “उ” स्वर “आ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऊ” बनता है।
  • जब “अ” स्वर “उ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऊ” बनता है।

उदाहरण:

पहला स्वरदूसरा स्वरपरिणामस्वरउदाहरण
रात + आ = रात्री
मातृ + ई = मातृ
विद्या + आ = विद्या
पुत्र + आ = पुत्रा
मन + उ = मूँ
घर + आ = घर
लिपि + आ = लिपि
सुख + आ = सुखू
धर्म + आ = धर्मा
गुरु + ई = गुरू
भर + ई = भरि
क्रीड़ा + आ = क्रीड़ा
गुड़ + आ = गुड़ू
बोट + उ = बोटू
दिक् + आ = दिक्ति
नदी + आ = नदू
कल + ई = कले
दिन + ई = दीन
बहुत + ई = बहुतू

यण संधि

यण संधि तब होती है जब किसी शब्द के अंत में “य” और अगली ध्वनि के मिलन से एक नया स्वर उत्पन्न होता है। इसे यण संधि कहा जाता है, क्योंकि इसमें “य” ध्वनि एक विशेष प्रभाव उत्पन्न करती है, जो शब्द के उच्चारण और अर्थ में परिवर्तन लाती है।

यण संधि के नियम:

  • जब “अ” स्वर “य” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “अय” बनता है।
  • जब “इ” स्वर “य” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ईय” बनता है।
  • जब “उ” स्वर “य” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऊय” बनता है।
  • जब “ए” स्वर “य” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “एय” बनता है।
  • जब “ओ” स्वर “य” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ओय” बनता है।

उदाहरण:

पहला स्वरदूसरा स्वरपरिणामस्वरउदाहरण
अयआत्मा + य = आत्माय
ईयविद्या + य = विद्याय
ऊयमुख + य = मुखय
एयकला + य = कलाय
ओयधन + य = धनय
अयप्राण + य = प्राणय
ईयतिथि + य = तिथीय
ऊयबन्धन + य = बन्धनय
एयदया + य = दयाय
ओयतपस्वि + य = तपस्विय
अयनदी + य = नदीय
ईयपठन + य = पथनीय
ऊयअनुष्ठान + य = अनुष्ठानय
एयवस्त्र + य = वस्त्रीय
ओयउच्च + य = उच्चय
अयभूमि + य = भूमिय
ईयविधि + य = विधीय
ऊयनीति + य = नीतिय
एयवाणी + य = वाणीय
ओययोग + य = योगय

अयादि संधि

अयादि संधि तब होती है जब “अय” ध्वनि एक शब्द के अंत में और दूसरे शब्द की शुरुआत में एक साथ आती है। इसमें “अय” ध्वनि के साथ मिलकर एक नया स्वर या ध्वनि उत्पन्न होती है।

अयादि संधि के नियम:

  • जब “अ” स्वर “य” के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “अय” बनता है।
  • जब “अय” और “अ” मिलते हैं, तो परिणामस्वर “अय” होता है।
  • जब “अय” और “अ” मिलते हैं, तो परिणामस्वर “अय” होता है।
  • जब “अय” और “अ” मिलते हैं, तो परिणामस्वर “अय” होता है।
  • जब “अय” और “इ” मिलते हैं, तो परिणामस्वर “अय” होता है।

उदाहरण:

पहला स्वरदूसरा स्वरपरिणामस्वरउदाहरण
अयनर + य = नरय
अयसहाय + अ = सहाय
अयउद्यम + इ = उद्यमि
अयश्री + अ = श्रीय
अयदया + य = दयाय
अयमय + य = मयाय
अयसह + अय = सहाय
अयकृपया + अय = कृपाय
अयकर्म + य = कर्मय
अयमन + अय = मनय
अयजन्म + य = जन्मय
अयप्रभा + य = प्रभाय
अयदया + अय = दयाय
अयसंध्याय + अ = संध्याय
अयवाय + य = वायय
अयकर्म + य = कर्मय
अयक्रिया + य = क्रियाय
अयबुद्धि + अय = बुद्धाय
अयविष्णु + य = विष्णुय
अयकुल + य = कुलय

गुण संधि

गुण संधि तब होती है जब एक स्वर मिलकर दूसरे स्वर की गुणात्मक वृद्धि करता है, यानी स्वर की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। इसमें मूल स्वर को बदलकर उच्चारण में गुणात्मक परिवर्तन होता है। यह विशेष रूप से संस्कृत और हिंदी में पाया जाता है।

गुण संधि के नियम:

  • जब “अ” स्वर “अ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “अ” रहता है।
  • जब “अ” स्वर “इ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ई” बनता है।
  • जब “अ” स्वर “उ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऊ” बनता है।
  • जब “अ” स्वर “ए” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “ऐ” बनता है।
  • जब “अ” स्वर “ओ” स्वर के साथ मिलते हैं, तो परिणामस्वर “औ” बनता है।

उदाहरण:

पहला स्वरदूसरा स्वरपरिणामस्वरउदाहरण
कुल + इ = कुली
गोल + इ = गोली
वह + इ = वही
धन + उ = धनु
सदन + ए = सदने
बोझ + ओ = बोझा
वसु + उ = वसु
मधु + ई = मधु
विधि + ई = विधि
वाणी + इ = वाणी
धन + अ = धन
चतु + उ = चतुर्ण
मृदु + उ = मृदू
गुरु + इ = गुरु
कल + इ = कली
व्रत + ओ = व्रतो
जन + उ = जनू
विन + इ = विनि
नदी + इ = नदी

व्यंजन संधि

व्यंजन संधि तब होती है जब एक शब्द के अंत में व्यंजन और दूसरे शब्द की शुरुआत में व्यंजन मिलते हैं, और ये व्यंजन एक साथ मिलकर एक नया ध्वनि रूप उत्पन्न करते हैं। इसमें व्यंजन ध्वनियों के संयोग से उच्चारण में परिवर्तन आता है।

उदाहरण:

पहला व्यंजनदूसरा व्यंजनपरिणामस्वरउदाहरण
अर्क + पथ = अर्कपथ
सपथ + धर = सपथधर
वदन + वायु = वदनवायु
चन्द्र + मणि = चन्द्रमणि
क्मकर्म + फल = कर्मफल
र्तरात + पंखा = रातपंखा
धर्मधर्म + शास्त्र = धर्मशास्त्र
सप्त + महल = सप्तमहल
संग + खेल = संगखेल
न्वनर + वंश = नरवंश
मुख + आश्रम = मुखाश्रम
शीत + जल = शीतजल
द्रव्य + जल = द्रव्यजल
गति + रेखा = गतिरेखा
न्कनदी + किनारा = नदीकिनारा
शिक्षा + विभाग = शिक्षाविभाग
प्मपुष्प + माला = पुष्पमाला
भ्नभवन + निर्माण = भवननिर्माण
जल + कुम्भ = जलकुम्भ
अधिकार + क्षेत्र = अधिकारक्षेत्र

Sandhi Viched: व्यंजन संधि के 13 नियम होते हैं

स्वर संधि

जब किसी वर्ग के पहले वर्ण (क, च, ट, तो, प) का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण (य, र, ल, व, ह) से या किसी स्वर के साथ होता है, तो:

  • क को ग में बदल जाता है
  • उदाहरण: दिक + अंबर = दिगंबर, वाक + ईश = वागीश
  • च को ज में बदल जाता है
  • उदाहरण: षट + आनन = षडानन, षट + यंत्र = षड्यंत्र
  • ट को ड में बदल जाता है
  • उदाहरण: षट + मास = षण्मास, षट + मूर्ति = षण्मूर्ति
  • त को द में बदल जाता है
  • उदाहरण: तत + उपरांत = तदुपरांत, उत + घाटन = उद्घाटन
  • प को ब में बदल जाता है
  • उदाहरण: अप + द = अब्द, अप + ज = अब्ज

अनुनासिकता संधि

जब किसी वर्ग के पहले वर्ण का मिलन न या म वर्ण के साथ होता है:

  • क् को ङ् में बदल जाता है
  • उदाहरण: वाक् + मय = वाङ्मय, दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
  • ट् को ण् में बदल जाता है
  • उदाहरण: षट् + मास = षण्मास, षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
  • त् को न् में बदल जाता है
  • उदाहरण: उत् + नति = उन्नति, जगत् + नाथ = जगन्नाथ
  • प् को म् में बदल जाता है
  • उदाहरण: अप् + मय = अम्मय

व्यंजन संधि

  • जब त का मिलन ग, घ, द, ध, प, म, य, र, या किसी स्वर से होता है, तो:
  • द बन जाता है
  • म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर म की जगह मिलन वाले वर्ण बन जाता है

वर्ण बदलाव संधि

  • त् से परे च् या छ् होने पर च बन जाता है
  • ज् या झ् होने पर ज् बन जाता है
  • ट् या ठ् होने पर ट् बन जाता है
  • ड् या ढ् होने पर ड् बन जाता है
  • ल होने पर ल् बन जाता है
  • म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर अनुस्वार ही लगता है
  • उदाहरण: सम् + रचना = संरचना, सम् + लग्न = संलग्न
  • त् + च, ज, झ, ट, ड, ल
  • उदाहरण: उत् + चारण = उच्चारण, सत् + जन = सज्जन

त् + श् संधि

  • जब त् का मिलन श् से होता है, तो त् को च् और श् को छ् में बदल जाता है
  • त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है, तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है
  • उदाहरण: उत् + श्वास = उच्छ्वास, शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र

त् + ह संधि

  • जब त् का मिलन ह् से होता है, तो त् को द् और ह् को ध् में बदल जाता है
  • त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है, तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है
  • उदाहरण: सत् + जन = सज्जन, जगत् + जीवन = जगज्जीवन
  • त् + ह
  • उदाहरण: उत् + हार = उद्धार, उत् + हरण = उद्धरण

स्वर संधि के बाद छ्

  • स्वर के बाद छ् वर्ण आ जाए, तो छ् से पहले च् वर्ण बदल जाता है
  • त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है
  • त् या द् के साथ ‘ड’ या ‘ढ’ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ‘ड्’ बन जाता है
  • उदाहरण: तत् + टीका = तट्टीका, वृहत् + टीका = वृहट्टीका
  • स्वर + छ
  • उदाहरण: स्व + छंद = स्वच्छंद, आ + छादन = आच्छादन

अनुस्वार संधि

  • अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो, तो म् अनुस्वार में बदल जाता है
  • त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है, तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है
  • उदाहरण: उत् + लास = उल्लास, तत् + लीन = तल्लीन
  • म् + च्, क, त, ब, प
  • उदाहरण: किम् + चित = किंचित, किम् + कर = किंक

म् + म संधि

  • म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है
  • त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् और ह की जगह पर ध बन जाता है
  • उदाहरण: उत् + हार = उद्धार, उत् + हृत = उद्धृत
  • म् + म
  • उदाहरण: सम् + मति = सम्मति, सम् + मान = सम्मान

अनुस्वार संधि

  • म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है
  • ‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है
  • उदाहरण: उत् + श्वास = उच्छ्वास, उत् + शृंखल = उच्छृंखल
  • म् + य, र, व्, श, ल, स
  • उदाहरण: सम् + योग = संयोग, सम् + रक्षण = संरक्षण

ऋ, र्, ष् संधि

  • ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है
  • चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता
  • किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है
  • उदाहरण: आ + छादन = आच्छादन, अनु + छेद = अनुच्छेद र् + न, म
  • उदाहरण: परि + नाम = परिणाम, प्र + मान = प्रमाण

स् के बाद स्वर

  • स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए, तो स् को ष बना दिया जाता है
  • उदाहरण: वि + सम = विषम, अभि + सिक्त = अभिषिक्त भ् + स्
  • उदाहरण: अभि + सेक = अभिषे, नि + सिद्ध = निषिद्ध

ऋ, र, ष और न संधि

  • यदि किसी शब्द में कहीं भी ऋ, र, या ष हो और उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर, क, ख, ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो, तो संधि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है
  • जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है, तब द की जगह पर त् बन जाता है
  • उदाहरण: राम + अयन = रामायण, परि + नाम = परिणाम

व्यंजन संधि पहचानने की ट्रिक

नियम: जब क् के पीछे ग, ज, ड, द, ब, घ, झ, ढ, ध, भ, य, र, ल, व अथवा कोई स्वर हो, तो प्रायः क् के स्थान में म् हो जाता है।

उदाहरण:

  • दिक् + गज = दिग्गज
    • यहाँ दिक् और गज के संयोग से क् को ग् में बदल दिया गया है, परिणामस्वरूप दिग्गज बना है।
  • धिक् + याचना = धिग्याचना
    • यहाँ धिक् और याचना के संयोग से क् को ग् में बदल दिया गया है, परिणामस्वरूप धिग्याचना बना है।
  • दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
    • यहाँ दिक् और दर्शन के संयोग से क् को ग् में बदल दिया गया है, परिणामस्वरूप दिग्दर्शन बना है।
  • धिक् + जड = धिग्जड
    • यहाँ धिक् और जड के संयोग से क् को ग् में बदल दिया गया है, परिणामस्वरूप धिग्जड बना है।
  • दिक् + अंबर = दिगम्बर
    • यहाँ दिक् और अंबर के संयोग से क् को म में बदल दिया गया है, परिणामस्वरूप दिगम्बर बना है।
  • वाक् + ईश = वागीश
    • यहाँ वाक् और ईश के संयोग से क् को ग् में बदल दिया गया है, परिणामस्वरूप वागीश बना है।

ट्रिक:

जब आप क् के साथ ग, ज, ड, द, ब, घ, झ, ढ, ध, भ, य, र, ल, व अथवा कोई स्वर जोड़ते हैं, तो अक्सर क् का स्थान म् से बदल जाता है।

विसर्ग संधि

विसर्ग संधि संस्कृत के व्याकरण में एक महत्वपूर्ण संधि है जो विशेष रूप से विसर्ग (ः) के अन्य ध्वनियों के साथ मिलन पर आधारित होती है। विसर्ग संधि तब होती है जब विसर्ग (ः) किसी अन्य स्वर या व्यंजन के साथ मिलता है और उसके परिणामस्वरूप ध्वनि में परिवर्तन होता है।

विसर्ग संधि का प्रकारनियमउदाहरण
विसर्ग + अ स्वरविसर्ग अ स्वर में बदल जाता हैधर्मः + अं = धर्मान्तंभगवान् + अं = भगवान्तं
विसर्ग + इ स्वरविसर्ग इ स्वर में बदल जाता हैकर्मः + इति = कर्मेतिसाधुः + ईश्वर = साधुईश्वर
विसर्ग + उ स्वरविसर्ग उ स्वर में बदल जाता हैधर्मः + उपदेश = धर्मोपदेशपृथुः + ऊषा = पृथूषा
विसर्ग + ऊ स्वरविसर्ग ऊ स्वर में बदल जाता हैपुनः + उपदेश = पुनोपदेशभक्तः + ऊषा = भक्तऊषा
विसर्ग + य स्वरविसर्ग य स्वर में बदल जाता हैभगवान् + यथार्थ = भगवान्यथार्थधर्मः + यथार्थ = धर्मयथार्थ
विसर्ग + र स्वरविसर्ग र स्वर में बदल जाता हैधर्मः + रचना = धर्मरचनासर्वः + रत्न = सर्वरत्न
विसर्ग + ल स्वरविसर्ग ल स्वर में बदल जाता हैकर्मः + लक्षण = कर्मलक्षणपुत्रः + लक्ष = पुत्रलक्ष
विसर्ग + व स्वरविसर्ग व स्वर में बदल जाता हैभगवान् + वाक्य = भगवान्वाक्यसर्वः + वचन = सर्ववचन
विसर्ग + ह स्वरविसर्ग ह स्वर में बदल जाता हैशिवः + हां = शिवहांसुरः + हय = सुरहय

विसर्ग संधि पहचानने की ट्रिक

जब विसर्ग (ः) के बाद इ या उ स्वरयुक्त अक्षर आता है और उसके बाद क, ख या प, फ अक्षर आता है, तो विसर्ग ष् में बदल जाता है।

विसर्ग संधि के नियम और उदाहरण:

विसर्ग + इ या उ स्वर + क, ख, प, फ:

विसर्ग के बाद इ या उ स्वरयुक्त अक्षर और क, ख, प, फ के आने पर विसर्ग की ध्वनि ष् में बदल जाती है।

उदाहरण:

  • पुष्पः + क = पुष्पष्क (विसर्ग ष् में बदल गया है)
  • धर्मः + क = धर्मष्क (विसर्ग ष् में बदल गया है)
  • पुष्पः + ख = पुष्पष्ख (विसर्ग ष् में बदल गया है)
  • पुष्पः + प = पुष्पष्प (विसर्ग ष् में बदल गया है)
  • शिवः + उपदेश = शिवषुपदेश (विसर्ग ष् में बदल गया है)

Sandhi Viched: विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं

विसर्ग + च या छ = श्

नियम: विसर्ग के साथ च या छ मिलने पर विसर्ग श् में बदल जाता है।

उदाहरण:

  • धनुः + च = धनुष्च (धनुष्क)
  • दुः + छाया = दुःछाया (दुःशाया)

विच्छेद:

  • निः + श्वास = निःश्वास
  • पुत्रः + चि = पुत्रश्चि

विसर्ग के पहले ‘अ’ और बाद में ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवे वर्ण, य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है।

उदाहरण:

  • मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
  • अधः + गति = अधोगति

विच्छेद:

  • तपः + चर्या = तपःचर्या
  • अन्तः + चेतना = अन्तःचेतना

विसर्ग से पहले ‘अ’, ‘आ’ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवे वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग ‘र’ या ‘र्’ हो जाता है।

उदाहरण:

  • निः + शक्ति = निःशक्ति
  • श्वासः + रक्ष = श्वासरक्ष

विच्छेद:

  • निः + शिव = निःशिव
  • धनुः + रूप = धनुःरूप

विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ बन जाता है।

उदाहरण:

  • दुः + शासन = दुःशासन
  • यशः + शरीर = यशशरीर

विच्छेद:

  • निश्श्वास = निःश्वास
  • चतुःश्लोकी = चतुःश्लोकी

विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग ‘श’ हो जाता है।

उदाहरण:

  • अधः + च = अधश्च
  • पुत्रः + छाया = पुत्रश्छाया

विच्छेद:

  • दुः + छाया = दुःछाया
  • पुत्रः + शिव = पुत्रशिव

विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।

उदाहरण:

  • धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
  • चतुः + टीका = चतुष्टीका

विच्छेद:

  • निः + धन = निषधन
  • धनुः + शास्त्र = धनुष्टशास्त्र

विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग ‘स्’ बन जाता है।

उदाहरण:

  • धनुः + साधन = धनुसाधन
  • निः + संदेह = निस्संदेह

विच्छेद:

  • निस्संतान = निःसंतान
  • मनस्संताप = मनःसंताप

यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।

उदाहरण:

  • निः + कलंक = निष्कलंक
  • दुः + कर = दुष्कर

विच्छेद:

  • निष्काम = निःकाम
  • निष्प्रयोजन = निःप्रयोजन

विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है।

उदाहरण:

  • निः + रस = नीरस
  • निः + रव = नीरव

विच्छेद:

  • निः + चेष्टा = नीरचेष्टा
  • निः + काम = नीरकाम

विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा।

उदाहरण:

  • अतः + एव = अतएव
  • पयः + आदि = पयआदि

विच्छेद:

  • निः + प्रयोजन = निःप्रयोजन
  • अधः + वस्त्र = अधवस्त्र

हिंदी की स्वतंत्र संधियाँ

हिंदी की निम्नलिखित छः प्रवृतियोवाली संधियाँ होती हैं-

  • महाप्राणीकरण
  • घोषीकरण
  • हस्वीकरण
  • आगम
  • व्यंजन लोपीकरण
  • स्वर व्यंजन लोपीकरण

पूर्ण स्वर लोप

 स्वरों के मिलने पर पूर्ण स्वर का लोप हो जाता है। इसके दो प्रकार हैं:

अविकारी पूर्ण स्वर लोप:

उदाहरण:

  • मिल + अन = मिलन
  • छल + आवा = छलावा

विकारी पूर्ण स्वर लोप:

उदाहरण:

  • भूल + आवा = भुलावा
  • लूट + एरा = लुटेरा
  • लात + ईयल = लटियल

हस्वकारी स्वर संधि

दो स्वरों के मिलने पर प्रथम खंड का अंतिम स्वर हस्व हो जाता है। इसके भी दो प्रकार हैं:

अविकारी हस्वकारी:

उदाहरण:

  • साधु + ओं = साधुओं
  • डाकू + ओं = डाकुओं

विकारी हस्वकारी:

उदाहरण:

  • साधु + अक्कडी = सधुक्कडी
  • बाबू + आ = बबुआ

आगम स्वर संधि

इसकी दो स्थितियाँ हैं:

अविकारी आगम स्वर:

उदाहरण:

  • तिथि + आँ = तिथियाँ
  • शक्ति + ओं = शक्तियों

विकारी आगम स्वर:

उदाहरण:

  • नदी + आँ = नदियाँ
  • लड़की + आँ = लड़कियाँ

पूर्ण स्वर लोपी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड के अंतिम स्वर का लोप हो जाता है।

उदाहरण:

  • तुम + ही = तुम्हीं
  • उन + ही = उन्हीं

स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड के स्वर तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है।

उदाहरण:

  • कुछ + ही = कुछी
  • इस + ही = इसी

मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है।

उदाहरण:

  • वह + ही = वही
  • यह + ही = यही

पूर्ण स्वर हस्वकारी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड का प्रथम वर्ण हस्व हो जाता है।

उदाहरण:

  • अकन + कटा = कनकटा
  • पानी + घाट = पनघट

महाप्राणीकरण व्यंजन संधि

यदि प्रथम खंड का अंतिम वर्ण ‘ब’ हो और द्वितीय खंड का प्रथम वर्ण ‘ह’ हो, तो ‘ह’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ब’ का लोप हो जाता है।

उदाहरण:

  • अब + ही = कभी
  • कब + ही = कभी
  • सब + ही = सभी

सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड के अनुनासिक सब्जयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है, उसकी केवल अनुनासिकता बची रहती है।

उदाहरण:

  • जहाँ + ही = जहीं
  • कहाँ + ही = कहीं
  • वहाँ + ही = वहीं

आकारागम व्यंजन संधि

इसमें संधि करने पर बीच में आकार का आगम हो जाता है।

उदाहरण:

  • सत्य + नाश = सत्यानाश
  • मूसल + धार = मूसलाधार

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आशा है कि आपको यह ब्लॉग “Sandhi Viched” पसंद आया होगा। यदि आप कोट्स पर और ब्लॉग्स पढ़ना चाहते हैं, तो iaspaper के साथ जुड़े रहें।

FAQs

संधि क्या है?

संधि वह ध्वन्यात्मक परिवर्तन है जो दो शब्दों या अक्षरों के मिलाने पर होता है, जिसके कारण उच्चारण में बदलाव या नया शब्द बनता है।

हिंदी में संधि के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?

मुख्य प्रकार हैं: स्वर संधि (Swara Sandhi), व्यंजन संधि (Vyanjana Sandhi), और विसर्ग संधि (Visarga Sandhi)।

स्वर संधि के नियम क्या हैं?

स्वर संधि तब होती है जब दो स्वर मिलते हैं। नियम के अनुसार, स्वर एक साथ मिलकर नया स्वर बनाते हैं या एक स्वर को विशेष नियमों के अनुसार संशोधित किया जाता है।

व्यंजन संधि कैसे काम करती है?

व्यंजन संधि तब होती है जब दो व्यंजन मिलते हैं। नियम के तहत, व्यंजन को नया ध्वनि या अक्षर बनाने के लिए संशोधित या संयोजित किया जाता है।

विसर्ग संधि क्या है?

विसर्ग संधि “ḥ” (विसर्ग) ध्वनि के साथ होती है जो एक शब्द के अंत में होती है। यह ध्वनि अगले ध्वनि के आधार पर बदल जाती है।

स्वर संधि का एक उदाहरण क्या है?

उदाहरण के लिए, “राजा” (Raja) + “अंग्रेज़” (Angrez) = “राज़” (Raaj)।

व्यंजन संधि में क्या होता है?

उदाहरण के लिए, “गति” (Gati) + “सुख” (Sukh) का मिलन “गतिसुख” (Gatisukh) हो जाता है, जहाँ व्यंजन मिलकर समन्वित होते हैं।

विसर्ग संधि में सामान्य परिवर्तन क्या होते हैं?

उदाहरण के लिए, “निः” (Nih) + “स्वार्थ” (Swarth) मिलकर “निःस्वार्थ” (Nihswarth) बन जाता है।

पूर्ण स्वर लोप का नियम क्या है?

जब दो स्वर मिलते हैं, तो पहला स्वर पूरी तरह से लोप हो सकता है या विशेष नियमों के अनुसार मिला दिया जाता है, जैसे “मिल” (Mil) + “अन” (An) = “मिलन” (Milan)।

आगम स्वर संधि में शब्दों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

आगम स्वर संधि में दो शब्दों के बीच एक स्वर जोड़ा जाता है, जैसे “तिथि” (Tithi) + “आं” (An) = “तिथियाँ” (Tithiyan)।

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